धर्म और भाग्य

इस मेले में आते है भूत और प्रेत : कमज़ोर दिलवाले पढने की हिम्मत ना करे !

मेला दिलों का आता है आके चला जाता है….

ये गाना तो आप सबने सुना होगा और मेले का नाम सुनते ही झूले, खेल, मस्ती, चाट जैसी चीज़ें दिमाग में आ जाती है.

आज हम आपको एक ऐसे मेले के बारे में बताएँगे जहाँ ये खेल, मस्ती चाट, पकौड़ी तो होती ही है लेकिन साथ साथ इस मेले में होते है भूत और प्रेत भी..

अगर आपका दिल कमज़ोर है तो आगे पढने का सोचे भी नहीं क्या जाने इस भुतिया मेले के बारे में पढ़कर आपकी नींद हो जाये हराम…

हमारा देश बहुत ही अनोखा है. एक ओर यहाँ आधुनिकता में डूबे हुए शहर है तो दूसरी ओर देश के कुछ कोने ऐसे भी है जहाँ के रीती रिवाज ऐसे है कि सुनकर ही सर चकरा जाए. मेले हमारे यहाँ के गाँवों की पहचान है. साहित्य से लेकर सिनेमा तक हर क्षेत्र में मेलों का विशेष स्थान है.

अलग अलग इलाकों में लगने वाले मेले उस इलाके के रीति रिवाज़ और रहन सहन की झलक प्रस्तुत करते है.

ऐसा ही एक मेला मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के एक गाँव में लगता है. इस मेले की सबसे खास बात ये है कि ये मेला इंसानों का नहीं भूतों का मेला होता है.

इस गाँव में मकर सक्रांति के बाद पूर्णिमा को एक मेला लगता है. यह मेला एक महीने तक चलता है. कहा जाता है कि इस मेले में भूत प्रेत बाधा से पीड़ित लोग आते है और यहाँ आकर भूतों से मुक्त हो जाते है.  यह मेला एक बाबा की याद में लगता है, कहा जाता है कि करीब 300 साल पहले उन बाबा ने यहाँ जीवित समाधी ली थी. उन बाबा में भूतों को वश में करने की शक्ति थी और आज भी मेले में आये हुए भूत बाधा से पीड़ित लोगों को बाबा स्वस्थ कर देते है.

विज्ञान भूत प्रेत के अस्तित्व का मानता नहीं तो नकारता भी नहीं है.

ये अन्धविश्वास है या सच इसके बारे में सबकी अलग अलग राय है. लेकिन इस मेले की मान्यता पूरे देश में है तभी तो हर साल मकर सक्रांति के बाद की पहली पूर्णिमा से शुरू होकर महीने भर चलने वाले इस मेले देश के कोने कोने से लोग आते है.

मध्यप्रदेश का ये इलाका आदिवासी बाहुल्य वाला इलाका है और यहाँ भुत, प्रेत, चुड़ैल, झाड़ फूंक पर अब भी बहुत विश्वास किया जाता है.

मान्यता के अनुसार भूत प्रेत बाधा से ग्रसित व्यक्ति चौराहे पर एक झंडे की परिक्रमा लगाते है.

हर परिक्रमा के बाद उनकी परेशानी में कमी आती है. परिक्रमा लगाते लगाते उन्हें प्रेत बाधा से मुक्ति मिल जाती है और वो स्वस्थ हो जाते है. उनके शरीर से प्रेत निकलकर पास के बरगद के पेड़ पर उल्टा लटक जाता है जहाँ उस परेशान आत्मा को मुक्ति मिल जाती है.

जब प्रेत बाधा से ग्रसित लोग परिक्रमा लगा रहे होते है वो दृश्य बड़ा भयानक होता है. कमज़ोर दिलवाले तो वो दृश्य देख ही नहीं सकते.

परिक्रमा लगाते हुए कोई लोहे की मोटी मोटी जंजीरों से बंधा रहता है, कोई जोर जोर से चीखता रहता है कोई कराहता है, कोई बडबडाता है. जैसे जैसे इनकी हालत सुधरती है माहौल शांत होजाता है.

पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद स्वस्थ होने वाले व्यक्ति के शरीर के वजन के बराबर गुड मंदिर में चढ़ाया जाता है. हर वर्ष टनों गुड़ मंदिर में इकठ्ठा होता है जिसे आये हुए श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है.

यहाँ हर शाम आरती होती है. मेले के दौरान महीने भर तक विशेष आरती होती है.

इस आरती की सबसे अनोखी बात ये होती है कि आरती के दौरान कुत्ते भी आरती में ना सिर्फ हिस्सा लेते है अपितु  वाद्ययंत्रों की आवाज़ के साथ अपनी आवाज़ भी मिलाते है. इस दौरान होने वाली आरतियों में सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमा की आरती होती है. पूर्णिमा की रात को बाबा की शक्ति सबसे ज्यादा होती है और अधिकतर लोगों को इसी दिन प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है.

इस गाँव की एक ओर खास बात है.

जब से बाबा ने 300 साल पहले जीवित समाधी ली थी उसके बाद से ही इस गाँव में मृत्यु के बाद किसी का अग्नि संस्कार नहीं होता है अर्थात मृत शरीर को जलाया नहीं जाता है. मृत्यु होने के बाद व्यक्ति को उसके खेत या ज़मीन में ही समाधी दे दी जाती है.

इस मंदिर की सार संभल बाबा के वंशज ही करते है.

मंदिर के ये महंत भी बाबा की तरह ही जीवित समाधी लेते है. इसका मतलब है कि जब उन्हें बहन हो जाता है कि उनका अंत समय आने वाला है तो महंत अपने उत्तराधिकारी को मंदिर का भर संभलवाकर ध्यान समाधी में लीं हो जाते है और अपने प्राण त्याग  देते है.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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