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भारत के इतिहास की पहली महिला जिसने दी थी यमराज को टक्कर ! भारतीय स्त्री की ऐसी यश गाथा कि आप इसको शेयर किये बिना रह नहीं पायेंगे

महाभारत में जब युधिष्ठिर मारकण्डेय ऋषि से पूछते हैं कि द्रोपदी जितनी महान कोई अन्य महिला है क्या?

तो इसका जवाब सुन युधिष्ठिर भी आश्चर्यचकित हो गये थे.

यह महिला भारत के इतिहास की पहली महिला जिसने दी थी यमराज को टक्कर. यमराज भी इस नारी के पति प्रेम के सामने हार गया था.

महाभारत के अलावा भी कई जगह सावित्री नाम से एक महिला की कहानी आती है. सत्यवान और सावित्री की कहानी को कुछ मौकों पर महिलायें गीत रूप में गाती भी हैं.

ये थी भारत के इतिहास की पहली महिला जिसने दी थी यमराज को टक्कर!

तो आज हम आपको इन्हीं सावत्री देवी की गाथा बताने वाले हैं, जिन्होनें यमराज को टक्कर देते हुए, अपने पिता, ससुर और अंत में पति के लिए जीवनदान बड़ी चालाकी से मांग लिया था. इस कहानी को इतिहास में सबसे ऊपर की महिलाओं की कहानियों में इसका माना जाता है कि इससे पहले किसी और महिला ने यमराज को टक्कर देने की सोची भी नहीं थी. तो आइये पढ़ते हैं एक वीर महिला की यश गाथा-

मद्र देश की है कहानी

यह कहानी मद्र देश की है जो वर्तमान में दक्षिण कश्मीर के नाम से जाना जाता है.

कभी यहाँ अश्वपति नाम के राजा का राज हुआ करता था. राजा के कोई भी संतान नहीं थी. काफी संतों की शरण में जाने के बाद इनको कठोर तपस्या के लिए बोला गया. तब राजा अट्ठारह साल तक तपस्या में लीन रहा और इस तपस्या के कारण इनको बहुत ही सुन्दर पुत्री का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. इस पुत्री का नाम सावित्री रखा गया.

राजा अश्वपति चाहते थे कि उनकी पुत्री खुद अपने लिए पति की खोज करे.

तब इसीलिए इन्होनें अपनी पुत्री को तीर्थ-यात्रा करने और अपने लिए पति की खोज करने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी. जब सावित्री पति की खोज में थीं तब इनको एक जगह पर युवक दिखा जो किसी आश्रम के पास घोड़े के बच्चे से खेल रहा था. इस युवक का नाम सत्यवान था. सावित्री इस युवक को अपना पति चुन लेती है किन्तु तभी नारद जी बताते हैं कि सत्यवान की आयु तो मात्र एक वर्ष रह गयी है.

तब सावित्री का दिल टूट जाता है लेकिन फिर भी वह सत्यवान से ही विवाह कर लेती है.

सत्यवान के माता-पिता अंधे थे

सत्यवान पहले ही यह बात बता चुका था कि मेरे माता-पिता दोनों अंधे हैं. लेकिन सावित्री ने फिर भी महल की बजाय सत्यवान के साथ आश्रम में रहना शुरू कर दिया. सावित्री सास-ससुर की भी सेवा करती थी और सारे घर का काम खुद करती थी. इस स्त्री ने कभी भी यह नहीं सोचा कि वह तो रानी रही है. महल से निकलकर यहाँ कहाँ आ गयी. उसने सिर्फ और सिर्फ अपने स्त्री धर्म का पालन किया.

तब एक दिन सत्यवान की मौत हुई

एक दिन सत्यवान पेड़ से लकड़ी काट रहा था और सावित्री वहीँ पेड़ के नीचे खड़ी थी, तब अचानक से सत्यवान को तेज चक्कर आते हैं और उसके प्राण निकल जाते हैं. सावित्री तभी एक काली परछाई को वहां देखती है. सावित्री समझ जाती है कि यह यमराज है. बिना सोचे समझे सावित्री इसी परछाई के पीछे हो लेती है. जब यमराज यह देखता है तो वह सावित्री को बताता है कि उनके पति का समय पूरा हो चुका है और होनी को कोई बदल नहीं सकता है इसलिए आप लौट जायें. किन्तु सावित्री पीछे-पीछे चलती रहती है तब यमराज सावित्री से कोई एक वर मांगने के लिए बोलता है बस पति को दुबारा जीवित करना, वह नहीं मांग सकती थी.

सावित्री इस वर में अपने सास-ससुर की आँखें मांग लेती है. यमराज ऐसा कर आगे बढ़ने लगता है और तभी कुछ देर बाद फिर पीछे देखता है कि सावित्री पीछे ही लगी है. तब वह सावित्री को दूसरा वर मांगने को बोलता है और इसके जवाब में सावित्री अपने पिता के लिए पुत्र की इच्छा पूरी करवा लेती है. कुछ देर बाद यमराज फिर देखता है कि सावित्री सशरीर यमलोक जाने की तैयारी कर रही है तब वह सावित्री को फिर एक वर मांगने को बोलता है, इसमें सावित्री बड़ी चालाकी से माँ बनने का वरदान मांगती है और यमराज आशीर्वाद देकर आगे बढ़ने लगता है. अब जब इतने के बाद भी यमराज देखता है कि सावित्री पीछे ही आ रही है तब वह गुस्सा हो जाता है और सावित्री को श्राप देने ही वाला होता है कि तभी सावित्री बोलती है कि अब मैं माँ तभी बन सकती हूँ जब मेरे पति जिंदा होंगे.

यह सुन यमराज समझ जाता है कि उसको अब सत्यवान के प्राण छोड़ने ही होंगे और वह सत्यवान को नया जीवन दान दे देता है.

सावित्री को मिली इतिहास में जगह

अपने इसी काम के लिए और पति प्रेम के लिए सावित्री को इतिहास में जगह मिली है. तभी शायद आपने सुना होगा कि लड़कियों को सति-सावित्री बोलने का भी रिवाज है जो यहीं से उत्पन्न हुआ है. यह कहानी दर्शाती है कि भारतीय स्त्रियाँ शुरुआत से ही पति को भगवान का दर्जा देते हुई आई हैं और उनके लिए किसी भी हद से गुजर सकती हैं.

कहते हैं यमराज को भी उम्मीद नहीं थी कि एक स्त्री इतनी चालाकी से मुझसे इतना कुछ मांग सकती है. लेकिन सावित्री से मिली टक्कर के सामने यमराज को भी झुकना पड़ा था और वह पहली बार यमलोक खाली हाथ लौटा था.

तो ये थी महिला जिसने दी थी यमराज को टक्कर!

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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