आम के पेड़ की कहानी – कहा जाता है कि पेड़-पौधों में भी जान होती है.
उन्हें भी दर्द होता है और उनके अंदर भी संवेदनशीलता होती है. लेकिन क्या आपने सुना या देखा है ऐसा पेड़ जिसको काटने पर इंसानों की तरह उसमें से भी खून की धारा बहने लगती हो शायद नहीं.
लेकिन अगर आपको यह पेड़ देखना है तो आपको हरियाणा के पानीपत में बने संग्रहालय जाना होगा क्योंकि इस पेड़ के सूखने के बाद उसकी लड़कियों से दरवाजे बनाए गए और उन्हे म्यूजियम में रख दिया गया.
पानीपत की तीसरी जंग में 7 हजार सैनिक हुए बलिदान
दरअसल हरियाणा को पौराणिक काल से ही युद्ध भूमि माना गया है. यहां पर कुरुक्षेत्र में महाभारत तो पानीपत 3 लड़ाइयां हुई थी. हरियाणा की मिट्टी में ही शौर्य, स्वाभिमान और संघर्ष की कहानी रचीबसी है. आज भी हरियाणा की मिट्टी में लाल रंग दिखाई देता है. इतिहास की नजर में पानीपत में 3 ऐतिहासिक जंग हुईं, पहली जंग सन् 1526 में, दूसरी जंग सन् 1556 में और तीसरी जंग सन् 1761 में लड़ी गई थी. पानीपत की तीसरी जंग यानि अंतिम जंग 14 जनवरी 1761 को मराठा सेनापति सादशिव राव भाऊ और अफगानी सेनानायक अहमदशाह अब्दाली के बीच लड़ी गई थी. इस जंग में मराठा सेनाओं का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ, विश्वासराव और महादाजी शिंदे कर रहे थे. जिस जगह युद्ध किया गया वहां पर एक आम का पेड़ लगाया गया ताकि युद्ध के बाद भी यह पेड़ मराठा सैनिकों के बलिदान की याद सबको दिलाता रहे. इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की जीत हुई लेकिन तकरीबन 7 हजार मराठा सैनिकों की मौत हो गई.
आम के पेड़ की कहानी – आम के पेड़ से निकलता था लाल रस
मराठाओं द्वारा लगाए गए आम के पेड़ के नीचे लड़ाई के बाद मराठा सैनिक विश्राम किया करते थे. यहां हुई लड़ाइयों में इतना रक्त बहा कि इस इलाके की माटी तक लाल हो गई. कहा जाता है कि इसका असर आम के पेड़ पर भी हुआ. खून की वजह से आम का पेड़ काला पड़ गया और तब से इस पेड़ को ‘काला अंब’ यानि काला आम कहा जाने लगा. इस पेड़ की खास बात यह थी कि इस पेड़ के आम का रस खून की तरह लाल होता था़, जिसे जल्दी कोई खाने की हिम्मत नहीं करता था.
पेड़ सूखने के बाद बन गया दरवाजा
कई सालों बाद ‘काला अंब’ का पेड़ सूख गया इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया. कवि ने इस पेड़ की लकड़ी से खूबसूरत दरवाजे बनवाए और इन दरवाजों को पानीपत के संग्रहालय में लगवा दिए. अब इस जगह पर एक स्मारक बनाया गया है, जिसे ‘काला अंब’ कहा जाता है. यह स्मारक लोहे की छड़ और ईटों से बना है. इस स्तंभ पर अंग्रेज़ी और उर्दू में लड़ाई के बारे में एक संक्षिप्त शिलालेख है. हरियाणा के राज्यपाल की अध्यक्षता में एक सोसायटी इस पर्यटन स्थल के विकास और सौंदर्यीकरण का कार्य करती है.
तो दोस्तों, ये है आम के पेड़ की कहानी – अब आपको समझ आ गया होगा कि आज भी भारत में कई ऐसी जगह हैं जो हमें अपने स्वतंत्रा सेनानियों की याद दिलाती हैं और आज भी माटी में उनकी शौर्यगाथा का बखान होता है.
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