कहते हैं कि ज्यादा चाय पीना सेहत के लिए नुकसानदायक होता हैं, लेकिन रोज़ पी जाने वाली यही चाय किसी इंसान की ज़िन्दगी में मिठास भर दे तो आप क्या कहेंगे?
आज चाय, मिठास और ज़िन्दगी का जो कनेक्शन हम आप को बतायेंगे वह किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं हैं.
आज से छह साल पहले यानि 2009 में मध्यप्रदेश के दमोह का रहना वाला गोविन्द अहारवाल अपनी पत्नी कमला और 10 साल के बच्चे नारायण के साथ दिल्ली काम की तलाश में आता हैं. तभी किसी वजह से रेल्वे स्टेशन में 10 साल का नारायण अपने माँ-बाप से बिछड़ जाता हैं. गोविन्द और कमला अपने बच्चे को हर जगह तलाश करते हैं लेकिन कोई जानकरी नहीं मिलती हैं. थक-हारकर 4 दिसम्बर 2009 को नारायण के माँ-बाप गाज़ियाबाद के गोविन्दपूरम पुलिस चौकी-1 में जाकर अपने बच्चे के गूम होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हैं. केवल इंतज़ार और कई दिनों तक अपने बच्चे की कोई ख़बर न पाकर गोविन्द और कमला दोनों अपने बच्चे के वापस लौटने की उम्मीद छोड़ देते हैं.
लेकिन छह साल बाद, रजबपुर के चाय की दूकान में उस बच्चे और उसके माँ-बाप की किस्मत बदलती हैं चाय के एक घूंट से.
लगती हैं ना पूरी फिल्मी कहानी?
खैर बातों में न उलझते हुए कहानी पर आते हैं.
रजबपुर की एक चाय दूकान में करण के नाम से काम कर रहे नारायण की मुलाकात अपने बिछड़े परिवार से तब मुमकिन हो पाई जब उस दूकान में चाय पीने आये रजबपुर के एसओ और उनके ड्राइवर की बात करण से हुई और इस बात-चित में घर आदि के बारे में पूछने पर करण रो पड़ा.
नारायण उर्फ़ करण की बात से यह पता चला कि नारायण अपने परिवार के साथ आज से छह साल पहले मजदूरी की तलाश में दिल्ली आया था. लेकिन वह अपने माता-पिता से बिछड़ गया और किसी ट्रेन में बैठ कर उत्तरप्रदेश के गजरौला क्षेत्र पहुच गया. उसी इलाके के एक आदमी ने उसे तीन साल तक अपने घर में रखा और खेतों में काम कराया. गजरौला में ही रहते हुए नारायण को सभी लोग करण कह कर बुलाने लगे और कुछ समय बाद करण रजबपुर आकर चाय की दूकान में काम करने लगा.
इलाके के एसओ सुमन कुमार इसी दूकान में रोज़ चाय पीने आते थे, लेकिन आज करण जब उन्हें चाय देने आया तो उन्होंने करण से उसका नाम और घर-परिवार के बारे में बात करने लगे. घर के बारे में सुनते ही नारायण भावुक होकर रोने लगा और तब सुमन कुमार को उसके पिता का नाम और गाँव की जानकारी मिली. सुमन कुमार ने इन्टरनेट की मदद से उस इलाक़े से किसी बच्चे की गुम होने बात पता करनी चाही तो यह मालूम हुआ कि छह साल पहले नारायण अपने माँ बाप से बिछड़ गया था और वर्तमान में नारायण के माता-पिता राजौरी गार्डन में बन रही किसी बिल्डिंग में मजदूरी का काम कर रहे हैं.
सुमन कुमार की मेहनत रंग लायी.
दमोह कण्ट्रोल रूम से मिली जानकारी और कुछ नंबर पर कॉल कर के सुमन कुमार ने नारायण की बात उसके भाई से करायी. अपने बच्चे की ख़बर मिलते ही नारायण के परिवार वाले रजबपुर पहुचे जहाँ नारायण अपने भाई और बहनोई को देखते ही उनसे लिपट गया और रोने लगा. इसके बाद एसओ सुमन कुमार ने नारायण को उसके परिवार के हवालें कर दिया.
सचमुच उस दूकान की चाय ने नारायण की ज़िन्दगी में फिर से मिठास भर दी.
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