केदारनाथ – दैविक दर्शन और अलौकिक शांति देने वाला देवस्थान
केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है.
केदारनाथ भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटक स्थलों में से एक है. दुर्गम रास्ते एवं विषम मौसमी परिस्थितियों की वजह से केदारनाथ मंदिर के द्वार साल भर में सिर्फ कुछ माह के लिए ही दर्शनार्थ खुलते है.
जून 2013 में उत्तराखंड और हिमाचल में आई भयावह बाढ़ और भुस्कलन की वजह से केदारनाथ मंदिर के आसपास का पूरा इलाका नष्ट हो गया था पर इसे दैवीय चमत्कार कहे या संयोग मुख्य मंदिर और गुम्बद इस भीषण प्रलय में भी सही सलामत रहे.
बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों ही तीर्थ आसपास स्थित है और कहा जाता है दोनों की यात्रा साथ ना करने पर यात्रा का पुण्य नहीं मिलता है.
मंदिर का इतिहास – इस मंदिर का निर्माण कब हुआ ये तो ठीक ठीक कोई नहीं बता सकता. तकरीबन पिछले हज़ार सालों से केदारनाथ हिन्दुओं का एक मुख्य तीर्थस्थल रहा है.
राहुल सांकृतायन के अनुसार केदारनाथ मंदिर का निर्माण 12वीं सदी के आस पास हुआ था. कहा जाता है कि स्वयं आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की थी. वहीँ कुछ इतिहासकार मानते है की शैव सम्प्रदाय के लोग आदि शंकराचार्य के आने से पहले ही केदारनाथ मंदिर में आते थे.
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में कथा प्रसिद्ध है की हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण शिव की तपस्या कर रहे थे. तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने दर्शन दिए और हमेशा नर और नारायण के पास ही केदारनाथ के रूप में निवास करने का वरदान दिया.
केदारनाथ के बारे में कहा जाता है कि बद्री विशाल और केदारनाथ के दर्शन कर लेने से प्राणी हर पाप से मुक्त हो जाता है और मृत्यु के बाद देवलोक का वासी होता है.
केदारनाथ ना केवल एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है अपितु ये एक बहुत ही प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है. गगनचुम्बी पर्वत श्रृंखलाएं, हरी भरी घाटियाँ, कल कल बहती नदियाँ किसी का भी मैन मोह लेती है और इन सब से ऊपर यहाँ आकर मिलती है अलौकिक शांति.
जिन्दगी की दौड़ भाग शोर गुल से दूर ये मंदिर और इसके आस पास के क्षेत्र का सुकून भरा वातावरण मन को प्रसन्न कर देता है.
केदारनाथ ना सिर्फ एक ज्योतिलिंग है अपितु केदारनाथ की गिनती चार धामों और पंचकेदार में भी होती है.
केदारनाथ के अलावा बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री मिलकर चार धाम माने जाते है. इनकी यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति होती है. पंचकेदार के बारे में कथा प्रसिद्ध है कि पांडव पापों से मुक्त होने के लिए भगवान शिव के दर्शन चाहते थे पर शिव उन्हें दर्शन देना नहीं चाहते थे.
धुन के पक्के पांडव शिव को खोजते खोजते केदार तक पहुँच गए जहाँ शिव बैल का रूप धारण कर छुपे हुए थे. भीम ने जब दो पहाड़ों के बीच पैर रखा तो जंगल के सभी जानवर पैर के नीचे से चले गए सिर्फ भगवन शिव को छोड़कर. भीम ने जब भागते हुए बैरल रूपधारी शिव को पकड़ना चाह तो वो धरती में गायब हो गए, भीम के हाथ सिर्फ बैल की पीठ आई. पांडवों की हठ और भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसी स्थान पर रहने का निर्णय किया.
इसीलिए केदारनाथ में बैल की पीठ के रूप में शिव की पूजा की जाती है. केदारनाथ के साथ पंचकेदार के अन्य मंदिर पशुपतिनाथ, तुंगनाथ, मदमेश्वर और कल्पेश्वर है. ये सभी स्थान बहुत पवित्र तीर्थस्थल है.
केदारनाथ के दर्शनार्थ जाना हो तो समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए सर्दी के दिनों में ये पूरा क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है इसलिए नवम्बर माह से लेकर मध्य अप्रेल तक मंदिर के द्वार बंद रहते है. अप्रेल मध्य से मंदिर का रास्ता यात्रियों के लिए खोला जाता है.
अगर असीम शांति और अलौकिक सौन्दर्य का अनुभव करना है तो एक बार केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा ज़रूर करे.
केदारनाथ जाकर अहसास होता है कि क्यों उत्तराखंड के इस भाग को देवभूमि कहा जाता है.
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