महाभारत से जुड़ी अनेक कहानियां आपने सुनी होगी लेकिन हम आपको एक ऐसी विचित्र कथा बताएँगे जिसमे भगवान कृष्ण ने स्त्री बनकर एक राजकुमार से विवाह किया.
फिर कुछ ऐसा हुआ कि आज तक दक्षिण पूर्व क्षेत्र में किन्नर उस देवता से विवाह करके उनके नाम का मंगलसूत्र पहनते है.
तो आइये जानते हैं ऐसा क्या हुआ था
कथानुसार, अर्जुन को शर्त उल्लंघन की सजा में इंद्रप्रस्थ से बहार निष्कासित कर दिया गया. उसे एक वर्ष के लिए तीर्थयात्रा करनी पड़ी.
उस दौरान अर्जुन ने उत्तर-पूर्व भारत का भ्रमण किया, जहां उनकी मुलाकात उलूपी नामक नागकन्या से हुई और उसके बाद अर्जुन ने उससे विवाह कर लिया. उलूपी ने एक बालक को जन्म दिया. उस बालक का नाम अरावन था.जिनको छोड़कर अर्जुन आगे यात्रा के लिए चला गया और अरावन अपनी माँ के साथ नागलोक में ही रहने लगा.
जब अरावन युवावस्था में पहुंचा तो नागलोक छोड़ अपने पिता अर्जुन के पास चला आया.
उस दौरान कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध हो रहा था अतः अर्जुन ने अरावन को भी युद्ध हेतु रणभूमि में भेज दिया.
युद्ध के दौरान पांडवो द्वारा जीत के लिए काली माता के चरणो में बलि देने के लिए एक राजकुमार की आवश्यकता हुई.
तो कोई राजकुमार बलि के लिए तैयार नहीं हुआ. तब अरावन ने स्वयं की नर बलि के लिए सामने आया परन्तु उसने एक शर्त रखी कि वह अविवाहित नहीं मरना चाहता. इसलिए उसको बलि से पहले विवाह करना है. उसकी इस शर्त को मान लिया गया परन्तु कोई राजा अपनी पुत्री का विवाह अरावन से नहीं करना चाहते थे, क्योकि विवाह के तुरंत बाद अरावन की नर बलि चढ़नी थी. ऐसे में कन्या विवाह के कुछ समय बाद ही विधवा हो जाती. इसलिए सारे राजा ने अरावन से अपनी कन्या का विवाह करना माना कर दिया.
तब भगवान कृष्ण ने इस समस्या के समाधान के लिए स्वयं मोहिनी रूप धारण कर अरावन के साथ विवाह किया.
उसके बाद अरावन ने स्वयं अपना सर काली माता को भेट चढ़ा दिया.
अरावन की मौत के बाद भगवान कृष्ण मोहिनी रूप धारण किये हुए पत्नी रूप में अरावन के मौत पर रोते हुए विलाप करते रहे और फिर अरावन की अंतिम विदाई कर दी गई.
अरावन की आखरी इच्छा पूर्ति के लिए भगवान कृष्ण ने यानि विष्णु ने मोहनी रूप धारण कर स्त्री बने और अरावन से विवाह किया था.
तब से किन्नर अरावन की पूजा करते है. अरावन को इरावन के नाम से भी बुलाते है और उनको अपना देवता मानते हैं.
दक्षिण-पूर्व भारत में अरावन के नाम की कई मंदिर बनवाये गए है, जिसमे अरावन का विवाह किन्नरों से किया जाता है और किन्नरों को मंगलसूत्र बंधकर अरावन की पत्नी बनाई जाती है.
तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले के अंतर्गत कूवगम गांव में अरावन का सबसे पुराना और मुख्य मंदिर स्थापित है.
इसलिए इस गाँव में तमिल नव वर्ष पर पहली पूर्णिमा में 18 दिनों तक उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान भारत के हर कोने से देश-विदेश के किन्नर यहाँ इकठ्ठा होते हैं और शुरू 16 दिन तक नाच गान विवाह की तैयारी करते है. फिर 17वें दिन पंडित यहाँ एक विशेष पूजा कर अरावन के नाम का मंगलसूत्र किन्नरों को पहनाते है. जिसको यहाँ के लोग थाली कहते है. इन किन्नरों का विवाह अरावन की मूर्ति के साथ होता है और 18वें दिन अरावन की मूर्ति को पूरे कूवगम गांव में घूमाते है. प्रतिमा को घुमाने के बाद तोड़ देते है. और प्रतिमा तोड़ते ही दुल्हन बनी किन्नर के मंगलसूत्र भी तोड़ कर उसका श्रृंगार हटा दिया जाता है फिर सारे किन्नर सफ़ेद कपडे पहन कर पति मृत्यु पर विलाप कर बहुत रोते हैं और इसके साथ यह उत्सव खत्म हो जात है .
यह उत्सव हर साल मनाया जाता है.
अरावन किन्नरों के देवता है अतः दक्षिण भारत के किन्नरों को अरावनी नाम से भी पुकारते है.