राष्ट्रचेतना से ओतप्रोत वन्दे मातरम !
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत है, जो हर राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गाया जा रहा है। जिसे सुनकर हर हिन्दुस्तानियों का दिल देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत हो जाता है ।
यदि वन्दे मातरम के बारे में पढ़ा जाए, यह गीत ही जनता के दिलों में देश प्रेम की भावना को जागृत करने के लिए ही लिखा गया था। जोकि स्वाधीनता संग्राम में इस उद्देश्य से गाया गया और अबतक गया जा रहा है।
वन्दे मातरम के रचियता बंकिमचंद्र ने यह गीत उस वक्त रचा था, जब ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोह में गॉड सेव द क्वीन गीत को अनिवार्य किया। अंग्रेजों के आदेश से आहत होकर, सरकारी अधिकारी बंकिमचंद्र ने संस्कृत व बंग्ला के मिश्रण से वन्दे मातरम गीत लिखा। मूल रूप से गीत दो पद्यांश की रचना थी- सुजलां सुफलां मलयज शीतलम, शस्य श्यामलाम् मातरम्।। जिसमें केवल मातृभूमि की वन्दना ही थी। इस गीत को बाद में आनन्दमठ उपन्यास में पूरा लिखा गया था। जो मूल रूप से बंग्ला में था।
बंकिमचंद्र द्वारा लिखा यह गीत जल्द ही देश में लोकप्रिय हो गया था। उस समय देशभर में जोश के साथ हुये स्वाधीनता संग्राम में यह गीत गाया गया। यही नहीं गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने यह गीत गया। और कांग्रेस अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत पुन गाया।
स्वाधीनता संग्राम में यह गीत लोकप्रिय हो गया था। मगर जब राष्ट्रगान का चयन की बात उठी फिर, गुरुदेव के जन-गण-मन को चयनित किया गया। क्योंकि वन्दे मातरम दो पदों के बाद विवादित था इस कारण, उस समय के निर्णायक गणों ने वन्दे मातरम की शुरुआती दो वाक्यांश को राष्ट्रगीत घोषित कर दिया था।
उस समय के निर्णायक गणों द्वारा वन्दे मातरम को राष्ट्र गीत घोषित करने के बाद। देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने स्वातंत्रता प्राप्ति के बाद, संविधान सभा में 26 जनवरी 1950 के दिन वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत अपनाए जाने के संबंध में वक्तव्य पढ़ा। उन्होंने वक्तव्य में कहा था कि शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन-गण-मन से संबंधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है, बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वन्दे मातरम गान, जिसने की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे ऐतिहासिक भूमिका निभायी है। को जन-गण-मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले।
देखा जाए वन्दे मातरम जनता के दिलों में राष्ट्रभावना को जगाने के अवसर पर लिखा गया था। जिसे काफी लंबे विवाद के बाद राष्ट्रगीत का दर्जा हासिल हुआ। हालांकि अपने लंबे सफ़र को तय करने के बावजूद यह गीत आजतक देशवासियों के ह्दय में देशप्रेम की भावना को जागृत कर रहा है।