अद्भुत पत्थर – आपने रामायण में अंगद के बारे में तो सुना ही होगा.
वहीं बालि का पुत्र अंगद जिसने रावण की सभा में एक पैर अडिग करके सबको चुनौती दी थी कि कोई उसके पैर को हिलाकर तो दिखाए, लेकिन अच्छे-अच्छे शूरवीर उसके पैर को टस से मस नहीं कर पाए थे. क्योंकि उन्होने श्रीराम का नाम नहीं लिया था. ठीक वैसे ही कलियुग में एक पत्थर भी है जो दिखने में 2 फीट का है और गोलाई करीब 1 फिट है.
जब भी इसे कोई देखता है तो लोग समझते हैं कि वे उसे एक हाथ से उठाकर फेंक देंगे. लेकिन जैसे ही उस पत्थर को उठाने की कोशिश करते हैं तो पसीने से तरबतर हो जाते हैं लेकिन पत्थर टस से मस होने का नाम नहीं लेता. इस पत्थर पर विज्ञान का कोई सिद्धांत भी लागू नहीं होता. लेकिन अगर आपको इस पत्थर को उठाना है तो आपको महादेव का जाप करना होगा तब आप उसे केवल एक उंगली के बल पर उठा सकते हैं.
जी हां. यह आश्चर्य का विषय है और 21वीं सदी में इस बात पर विश्वास करना थोड़ा अजीब लगता है. तो चलिए आपको बताते हैं इस पत्थर से जुड़े सारे रहस्य के बारे में और कहां स्थित है यह पत्थर…
मोस्टा मानो मंदिर में अद्भुत शिला
ये चमत्कार शिव के धाम पिथौरागढ़ में है.यह अद्भुत पत्थर दिल्ली से करीब 550 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के मोस्टा मानो मंदिर में स्थित है. लोगों का मानना है कि इस पत्थर में अलौकिक शक्तियां है, जो भी इस पत्थऱ को कंधे तक उठा लेता है उसकी किस्मत पलट जाती है. यह मंदिर चंडाक वन में स्थित है. मोस्टा मानो मंदिर में मोस्टा देवता भगवान भोलेबाबा का एक रूप हैं, लेकिन चंडाक वन का नाता मां काली से. वहीं पुराणों के अनुसार शुंभ-निशुम्भ ने मां काली को चुनौती देने के लिए शक्तिशाली राक्षस चंड-मुंड को उनके पास भेजा. मां काली ने चामुंडा का रूप धारण करके चंड-मुंड का संहार कर दिया. मान्यता है कि चंडाक वन ही वो जगह है जहां चंड-मुंड का वध किया गया था.
अद्भुत पत्थर को हिला पाना मुश्किल है
स्थानीय लोगों का कहना है कि ये अद्भुत पत्थर नेपाल से लाया गया है. उस समय एक नेपाली डोका में इस पत्थर को लाया गया था. नेपाल से लाकर इसे जहां रखा गया, वहां से आज तक कोई भी उस पत्थर को हिला नहीं सका है.यह अदभुत शिला आपको बिल्कुल शिवलिंग जैसी ही दिखाई देगा और यह मंदिर के एक कोने में रखा हुआ है.
अद्भुत झूला
इस मंदिर में इस अद्भुत शिला के अलावा एक बड़ा झूला भी है जिसे लोग देवलोक का झूला कहते हैं. पहले यह झूला देवदार के पेड़ से निर्मित था लेकिन बाद में इसे लोहे से ढाल दिया गया. मान्यता है कि इस झूले में देवियां झूला करती थी. सावन महीने ने जो भी ये झूला झूलता है उसे पुण्य मिलता है.
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