इन दिनों कोई अगर सड़क के रास्ते उत्तर प्रदेश को घूमने निकले तो उसे जगह जगह लगे पोस्टरों में राहुल गांधी और अखिलेश यादव साथ नजर आएंगे.
न केवल साथ नजर आएंगे बल्कि पोस्टरों पर लिखा भी मिलेगा – यूपी को ये साथ पंसद है.
यूपी को ये साथ पंसद है – अब यूपी को ये साथ कितना पसंद है ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन इस साथ और नारे के पीछे की हकीकत क्या जरा एक बार उसको भी समझ लीजिए.
एक बार उस नारे पर गौर कीजिए जिसमें कहा गया है कि यूपी को ये साथ पसंद है. नारा बहुत ही सोच समझकर तैयार किया गया है.
यूपी को ये साथ पंसद है नारे को विशेषकर मुस्लिम मतदाताओं को टारगेट करने के लिए बनाया गया है.
यूपी को ये साथ पंसद है – नारे के जरिए मुस्लिम मतदाताओं को संदेश देने की कोशिश की गई हैं कि जिस प्रकार बिहार में भाजपा विरोधी दलों ने एकजुट होकर नरेंद्र मोदी की सियासी बढ़त पर ब्रेक लगा दिए थे उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा दोनों मिलकर भाजपा को इस इस चुनाव में रोक सकते हैं.
यूपी को ये साथ पंसद है नारे के जरिए जहां मुसलमानों के सामने सपा और कांग्रेस द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एक मजबूत विपक्ष देने का दावा ठोंकने की कोशिश जा रही है तो वहीं दूसरी और मुस्लिम मतों को बसपा की ओर जाने से रोकने की भी कोशिश हो रही है.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या चुनावों में सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाती है. मुस्लिम मतदाता यदि भाजपा विरोधी जिस भी दल को एकजुट होकर मतदान करते हैं उसको चुनावों में लाभ मिलता है.
मुख्यमंत्री अखिलेश को लग रहा है कि सत्ता विरोधी रूझान के चलते यदि मुस्लिम बसपा के पाले में खिसक गए तो सपा को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है. जबकि दूसरी ओर कांग्रेस को भी पता है कि वह अकेले दम पर इस बार 10 सीटें भी नहीं जीत सकती हैं.
यदि ऐसा हुआ तो 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी को लेकर जनता में बहुत ही खराब संदेश जाएगा. क्योंकि नरेंद्र मोदी जिस प्रकार साहसिक निर्णय लेकर सरकार चला रहे हैं उससे जनता के बीच उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आ रही है.
मोदी को उसी स्थिति में रोका जा सकता है जब भाजपा विरोधी दलों का काडर वोट मिल जाए और उस पर मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर उस गंठबंधन को वोट करे.
बताया जाता है कि यूपी को ये साथ पंसद है नारे को तैयार करने के लिए कांग्रेस और सपा के रणनीतिकारों ने पूरी प्लानिंग की है. इस नारे का जो असली संदेश है वह मुस्लिमों के लिए है. यानी मुस्लिमों का जो प्रयास है कि नरेंद्र मोदी को हराने के लिए सभी विरोधी दल एक जुट हो.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सियासी बढ़त को रोकने के लिए दो धुर विरोधी दल कांग्रेस और सपा एक मंच पर आ गए हैं. तो लीजिए जो साथ यानी गंठबंधन आपको पसंद है वह हमने बना लिया है. अब मुस्लिमों को उस पर निर्णय करना है.
क्योंकि अगर भाजपा को इस वक्त नहीं रोका गया तो फिर राज्य सभा में भाजपा का बहुमत हो जाएगा और फिर मोदी को तीन तलाक जैसे मुद्दों पर सामान नागरिक संहिता बनाने से कोई नहीं रोक सकता है.
लिहाजा मुस्लिमों को नरेंद्र मोदी का डर दिखाकर कांग्रेस और सपा ने एक साथ आकर सियासी विकल्प का दांव चला है.
अब देखना बाकी है कि ये कितना परवान चढ़ता है.
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