सरकार में कोई तो ऐसा शख्स है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दबे पांव पीछा कर रहा है.
यह आशंका इसलिए है क्योंकि हाल के दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं घटी है जो न केवल इन सवालों को जन्म दे रही है बल्कि इस ओर संकेत भी कर रही है.
नरेंद्र मोदी की सरकार में कोई न कोई ऐसा शख्स है जो बार बार ऐसी चूक पर चूक करता जा रहा है, जिसके चलते अनावश्यक विवादों में उनका नाम लिया जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए सहारा से कथित पैसे लेने का जो आरोप केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने लगाया, उसके दस्तावेज लीक होने और अब प्रधानंमत्री के डिग्री मामले को लेकर ताजा निर्णय के बीच भले ही कोई सीधा संबंध न हो लेकिन ये घटनाएं आशंकाओं को जन्म जरूर दे रही हैं. क्योंकि जहां से पेपर लीक होकर केजरीवाल और प्रशांत भूषण के हाथों में गए वह संस्थान सीधे वित्त मंत्री अरूण जेटली के तहत आता है. इतना ही नहीं जिस वक्त सहारा के यहां छापा पड़ा था उस वक्त वहां अरूण जेटली वित्त मंत्री और उनके खासमखास के वी चौधरी सीबीडीटी के प्रमुख थे.
गौर करने वाली बात है नरेंद्र मोदी की सरकार और अरुण जेटली के वित्त मंत्रालय की कमान में छापे पड़े.
उसकी फाइल बनी उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का लिखा गया. फाइल में जो दस्तावेज बने उनमें नरेन्द्र मोदी पर मुख्यमंत्री रहते हुए औद्योगिक घरानों से पैसे लेने का जिक्र आया.
इतना ही नहीं उसकी फाइल बनकर उसके बहुत ही गोपनीय दस्तावेज प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी के हाथों चुपचाप पहुंचे गए.
कैसे और कौन है इनके पीछे?
अभी तक मामला गोपनीय है. फाइल देने वाले की मंशा भी संदेह के घेरे में हैं.
क्योंकि मोदी के खास माने जाने वाले अरूण जेटली के मंत्रालय के अधीन और उनके खास अफसर की नाक के नीचे ये सब हुआ और इसकी जानकारी सरकार में बैठे लोगों को नहीं लगी. ऐसा भला कैसे हो सकता है.
अरुण जेटली के ये खास अफसर वहीं के वी चौधरी हैं जिसने सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स याकि सीबीडीटी की जांच विंग की अपनी कमान में नितिन गडकरी के यहां छापे पड़वाए थे. ये छापे नितिन गडकरी के भाजपा के दोबारा अध्यक्ष पद पर ताजपोशी के ठीक एक दिन पहले पड़े थे और उसकी खबर में मीडिया में लीक कराकर गडकरी को भाजपा का दोबारा अध्यक्ष बनने से रोक दिया गया था.
उस वक्त भी गडकरी के कागज केजरीवाल और प्रशांत भूषण को मिले थे और भाजपा के एक वकील नेता की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ थे.
बहरहाल, अब यहीं के वी चौधरी मुख्य सतर्कता आयुक्त है.
भारत के इतिहास में पहली बार रेवेन्यू सेवा के रिटायर अफसर को भारत का मुख्य सतर्कता आयुक्त यानी सीवीसी बना गया है. बताया जाता है इनको केंद्रीय सूचना आयोग का प्रमुख बनवाने में भी जेटली की ही भूमिका थी. के वी चौधरी एक समय कांग्रेस के चहेते अफसरों में रहे हैं.
जिस वक्त केंद्र में भाजपा सरकार आई थी उस वक्त किसी को भी उम्मीद नहीं थी लेकिन तब अरुण जेटली ने के वी चौधरी को अल्पावधि के बावजूद सीबीडीटी चैयरमैन बनवाकर सबको हैरान दिया था. केवी चौधरी सीबीडीटी से रिटायर हुए तो जेटली ने उन्हें एसआईटी का सदस्य बना नार्थ ब्लॉक में अपने साथ बैठाए रखा.
ताजा मामला केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) के फैंसले से जुड़ा है. आयोग ने एक ऐसा फैसला दिया है कि जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की डिग्री फिर निगरानी के दायरे में आ गई है.
सवाल है कि आखिर सरकार में कौन है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम बार बार विवादों में जोड़ना चाहता है.
इसके पीछे उसकी क्या मंशा है, क्योंकि जिस प्रकार एक के बाद एक करके सुनियोजित तरीके से घटनाएं घट रही है उसके पीछे किसी न किसी साजिश की बू आ रही है.
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