सामाजिक महापुरुष – पानी में तैरने वाली साईकिल
बिहार में रहने वाले 60 वर्षीय मोहम्मद सैदुल्लाह ने एक अद्भुत पानी में तैरने वाली साईकिल का निर्माण किया है. कुछ अपरिहार्य परिस्थिति के कारण वे केवल 10वी कक्षा तक ही पढ़ पाए परन्तु इनका नई चीज़े खोजने का जज्बा कम नहीं हुआ. वे मानते हैं कि “एक अविष्कारक का दिमाग हमेशा स्वतंत्र रहता है.
सैदुल्लाह एक धार्मिक मुसलमान है और गर्व से कहते हैं कि इन्होनें सहायता की गुहार केवल ईश्वर से ही की है. मोहम्मद जी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते हैं इसीलिए इन्होंने अपने सारे आविष्कारों को इनका नाम दिया है, नूर साईकिल , नूर राहत (पॉवर हाउस), और नूर वाटर पंप.
बिहार एक बाढ़ वाला इलाका है. सन 1975 में बिहार के अन्दर बाढ़ आई थी, जो 3 सप्ताह तक रही थी. तब सैदुल्लाह जी को अपने हर रोज़मर्रा की चीज़े लेने के लिए नदी पार कर जाना पड़ता था. नदी पार करने के लिए वे नाव का सहारा लेते थे और शहर में साईकिल का. तब इनको विचार आया कि क्यों ना साईकिल को ही पानी में तैराया जाये, जिससे पैसे की बचत हो और लोगों को भी आसानी हो.
फिर तो इन्होंने केवल तीन दिन में ही पानी में तैरने वाली साईकिल का निर्माण कर दिया. नूर साईकिल से इन्होंने गंगा पार कर दी, पहेलाघाट से महेंदुघाट तक. पहली बार जब इन्होंने साईकिल बनाई तो इनका खर्चा 6000 रूपये हुआ था और अब वे मानते है कि वह इसी को 3000 में बना सकते है.
यह पानी में तैरने वाली साईकिल एक साधारण साईकिल की तरह ही है. केवल इसमें 2 अतिरिक्त चीजें हैं जिसके सहारे साईकिल पानी और ज़मीन दोनों में चल सकती है. पहली चीज़ है 4 (rectangular) आयताकार एयर फ्लोट. यह आयातकर एयर फ्लोट दो जोड़ी में होती है, एक आगे के पहिये में और एक पीछे के, जिससे साईकिल पानी में भी चलती है. यह फ्लोट को गुना (fold) भी कर सकते है जिससे ज़मीन पर चलते वक़्त कोई खास तकलीफ ना हो. यह फ्लोट का वज़न काफी हल्का ही होता है जिससे साईकिल चलाने वालों को ज्यादा भार सहना नहीं पड़ता.
इस खोज के लाभ काफी स्पष्ट हैं. एक तो यह कि गांववालों को नांव पर निर्भर होना नहीं पड़ेगा और दूसरा है पैसे की बचत क्योंकि यह साईकिल ज़मीन पर भी चल सकती हैं.
इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने.