शिक्षा और कैरियर

सरकारी स्कूल में ‘स्मार्ट क्लास’, प्राइवेट स्कूलों को मात

स्मार्ट क्लास – अगर हम अपने दादी-दादी और पेरेंट्स के स्कूल के दिनों पर गौर करें तो ये सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ा करते थे। फिर 90 के दशक में प्राइवेट स्कूल पालकों की पहली पसंद बन गए।

अब तो प्राइवेट स्कूल भी स्थानीय बोर्ड का न होकर सीबीएसई बोर्ड का होना एक जरूरत बन गया है।

यूं तो कई महान लोग देश के सरकारी स्कूलों से ही पढ़कर निकलने लगे थे। लेकिन बीते कुछ वर्षों से सरकारी स्कूल कुछ ज्यादा ही खस्ताहाल हो गए और इनकी साख भी गिरती जा रही है। आलम यह है कि सरकारी स्कूल में दाखिला लेना किसी मजबूरी की तरह समझा जाता है। सरकारी स्कूलों में न उचित  सुविधाएं मिलती हैं और न ही ढंग के शिक्षक। कई स्कूलों की इमारतें तो खाली पड़ी रहती हैं।

लेकिन खुशी की बात है कि धीरे-धीरे सरकारी स्कूलों की तस्वीर भी बदल रही है। शहरों को स्मार्ट बनाने के साथ ही सरकारी स्कूलों को भी स्मार्ट बनाया जा रहा है। प्राइवेट स्कूलों में तो बहुत पहले ही ब्लैक बोर्ड्स को अलविदा कर दिया गया था। अब सरकारी स्कूलों के बच्चे भी प्रोजेक्टर पर पढ़ रहे हैं।

ऐसा देशभर के विभिन्न राज्यों के कई सरकारी स्कूलों में हो रहा है। आइए आज ऐसे ही कुछ स्कूलों की सुख-सुविधाओं पर नजर डालते हैं।

गुरुग्राम में स्मार्ट क्लास

एक ताजा खबर के अनुसार गुरुग्राम प्रशासन जुलाई महीने से शहर में ‘edutech’ नाम से एक परियोजना शुरू करने जा रहा है। इस परियोजना के तहत गुरुग्राम के 17 व रेवाड़ी के तीन सरकारी स्कूलों में स्टूडेंट्स को टैबलेट की मदद से पढ़ाया जाएगा।

परियोजना के अंतर्गत जहां पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को ‘टैब लैब’ की तर्ज पर पढ़ाया जाएगा। वही नौंवी से बारहवीं तक के विद्यार्थियों की प्रोजेक्टर की मदद से ‘स्मार्ट क्लास’ ली जाएगी।

इंदौर में ट्रायल

देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में बतौर ट्रायल 10 स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू की गई थी। इन स्कूलों से सकारात्मक प्रतिक्रिया आने के बाद अब शहर के 100 स्कूलों में स्मार्ट क्लास खोलने की योजना पर काम चल रहा है।

बैकुंठपुर में ई-लर्निंग

छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर जिले के 38 हाई व हायर सेकेंडरी स्कूलों में ई-लर्निंग क्लास बनाने के लिए 76 लाख रुपये (प्रत्येक स्कूल पर 2-2 लाख रुपए) खर्च किए गए हैं। यहां विद्यार्थियों को बोर्ड पर फार्मूला लिखने के बजाए इसे एनीमेशन के जरिए समझाया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप 10वीं-12वीं के स्टूडेंट्स के परिणाम में भी सुधार आया है।

शिक्षक की ‘स्मार्ट क्लास’

प्रशासन ने रूचि नहीं दिखाई तो उत्तराखंड के पौड़ी जिले के नैल गांव के शिक्षक मनोधर नैनवाल ने विद्यार्थियों के लिए स्मार्ट क्लास शुरू कर ली। उन्होंने खुद लैपटॉप, प्रोजेक्टर व अन्य उपकरणों का खर्च उठाया। बच्चों के सॉफ्टवेयर बनाकर उन्हें इससे जोड़ा। अब यहां प्राथमिक कक्षा के बच्चे भी लैपटॉप चलाना जानते हैं। उनके इस कार्य के लिए वो राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।

इन सरकारी स्कूलों में किए जा रहे प्रयास वाकई काबिल-ए-तारीफ हैं। साथ ही यह कायाकल्प बड़े स्तर पर कई जिलों में  किया जा रहा है।

Gaurav Verma

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