उरी हमले के बाद भी जिस तरह से पाकिस्तान अपनी हदें पार कर रहा है, उसको देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तय किया है कि आतंकी पाकिस्तान की वाटर थैरेपी कर उसकी अक्ल ठिकाने लगाना अब बहुत जरूरी है.
जानकारों का कहना है कि मोदी की वाटर थैरेपी पाकिस्तान के आतंकी कैंसर का ईलाज करने में बेहद कारगर हथियार है.
यह मोदी की वाटर थैरेपी इतनी कारगर है कि भारत सरकार आतंक की कीमो थैरपी करने के साथ यदि एक डोज मोदी की वाटर थैरेपी की भी दे देती है तो पाकिस्तान बिना बम ओर बंदूक के ही घुटनों के बल आ जाएगा.
यही वजह है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ हुए 56 वर्ष पुराने सिंधु जल समझौते को रद्द करने की धमकी दी है.
सरकार ने कहा है कि अगर पाकिस्तान के रवैये में कोई बदलाव नहीं आता है तो वह मोदी की वाटर थैरेपी इस्तेमाल कर सकती है. बता दें कि यदि भारत यह समझौता तोड़ दे तो पाकिस्तान पानी के लिए तरस जाएगा.
गौरतलब है कि पाक के खिलाफ कार्रवाई से पहले सैन्य तैयारियों को परख रहे मोदी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उसने सारे विकल्प खुले रखे हैं.
आप को बता दें कि देश के विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो दो प्रमुख विवाद थे. एक कश्मीर को लेकर और दूसरा सिंधु नहीं के जल बंटवारे को लेकर. कश्मीर पर पाकिस्तान ने कभी नहीं चाहा कि उसका कोई हल निकले लेकिन सिंधु जल विवाद को निपटाने के लिए वह एकदम तैयार हो गया.
इसके पीछे पाकिस्तान की मजबूरी थी कि उसका हाथ पत्थर के नीचे दबा हुआ था. पाकिस्तान के लिए यह संधि जीवन मरण के समान है.
विश्व बैंक की मध्यस्थता से 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी. इस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे. नेहरू ने किस प्रकार आंख मूंदकर भारत के हितो की अनदेखी की यह संधि उसका जीता जागता उदाहरण है.
पड़ोसी देश पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ कृषि भूमि सिंचाई के लिए इन नदियों के जल पर निर्भर है. यदि भारत इनका पानी अवरुद्ध कर दे तो पाकिस्तान की कमर ही टूट जाएगी.
इस संधि के तहत हिमालय से निकलने वाली तीन नदियों व्यास, रावी और सतलज का नियंत्रण भारत को दिया गया जबकि तीन नदियों सिंधु, चिनाब व झेलम पर नियंत्रण की जिम्मेदारी पाकिस्तान को दी गई. इसके तहत भारत अपनी छह नदियों का 80 फीसद से ज्यादा पानी पाकिस्तान को देता है. भारत के हिस्से केवल 19.48 फीसद पानी आता है.
इतने भेदभाव के बावजूद भारत ने अपने दिल पर पत्थर रखकर पाकिस्तान का कभी पानी नहीं रोका.
अगर स्थिति इसके उलट होती तो आज भारत पानी की एक एक बूंद के लिए तरस रहा होता. यह संधि केवल भारत के चलते सफल हुई है. अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति ने 2011 में इस संधि को दुनिया की सफलतम संधि करार दिया था.
इस संधि को तोड़ने की मांग भारत में कई बार उठ चुकी है. वर्ष 2005 में इंटरनेशनल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट और टाटा वाटर पॉलिसी प्रोग्राम ने भी इसे खत्म करने की मांग की थी. उनका कहना था कि संधि के चलते जम्मू-कश्मीर को हर साल 60 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो रहा है.
अकूत जल संसाधन होने के बावजूद इस संधि के चलते घाटी को बिजली नहीं मिल पा रही है.
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