इसी तरह ईसाई धर्म की पुस्तकों में नोहा का वर्णन मिलता है. उस कथा के अनुसार जब धरती पर पाप की मात्र बढ़ गयी और मनुष्यता त्राहि त्राहि कर उठी तो ईश्वर ने धरती को नष्ट कर एक बार फिर जीवन की स्थापना की.
इसके लिए इश्वर ने नोहा को चुना और नोहा ने एक विशालकाय नाव बनाई. उस नाव में सभी जीव जंतुओं के जोड़े और वनस्पति फसल फल फूल के बीज संचित किये गए.
प्रलय बाढ़ के रूप में आई और पूरी धरती जलमग्न हो गयी. ऐसे में तेज़ जलधारा में कुछ बचा तो वो थी नोहा की नाव. इस तरह नोहा ने धरती पर फिर से जीवन की शुरुआत की.
देखा आपने दोनों कहानियों में कितनी समानताये है. इतनी ज्यादा समानताएं दो अलग अलग धर्मों की कहानियों में और वो भी ऐसे धर्म जो दुनिया के दो अलग अलग हिस्सों में फले फुले आश्चर्य की ही बात है.