सिकंदर लोधी जैसा राजा जो भारत पर राज कर रहा था वह जब एक संत से हारा था तो यह बात इतिहास में तो दर्ज होनी ही थी.
वैसे यह किसी युद्ध की कहानी नहीं है. यहाँ कोई लड़ाई नहीं लड़ी गयी थी. बस यहाँ विचारों की लड़ाई थी, धर्म की लड़ाई थी.
हुआ यह था कि सिकंदर लोधी चाहता था कि संत रैदास जी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लें. ताकि इनके ऐसा करने से और भी लोग जो इनको मानते हैं वह खुद ब खुद मुसलमान बन जायेंगे.
लेकिन संत रैदास जी थे मन मौजी संत. तो इस कार्य को करवाने के लिए सिकंदर ने अपने एक अनुयायी को भेजा और यहाँ हुआ यह कि वह अनुयायी संत रैदास जी से इतना प्रभावी होता है कि वह खुद ही हिन्दू बन जाता है. इस बात पर गुस्सा होकर और खुद को हारा हुआ मानकर सिकंदर लोधी संत रैदास जी को जेल में डाल देता है.
क्या और कहाँ दर्ज है यह कहानी
डॉ विजय सोनकर शास्त्री जी की तीन पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं उनमें से एक पुस्तक ‘हिन्दू चर्मकार जाति’ के पेज 227 पर यह कहानी दर्ज है.
विजय जी के अनुसार, मुस्लिम आक्रांताओं के धार्मिक उत्पीड़न का अहिंसक- तरीके से सर्वप्रथम जवाब देने की कोशिश संत शिरोमणी रैदास ने की थी. इनको सिकंदर लोदी ने बलपूर्वक चर्म कर्म में नियोजित करते हुए ‘चमार’ शब्द से संबोधित किया और अपमानित किया था। यह लिखते हैं कि भारत में ‘चमार’ शब्द का प्रचलन वहीं से आरंभ हुआ था.
डॉ विजय सोनकर शास्त्री के मुताबिक, संत रैदास ने सार्वजनिक मंच पर शास्त्रों के विद्वान, मुल्ला सदना फकीर को परास्त किया था.
परास्त होने के बाद मुल्ला सदना फकीर सनातन धर्म के प्रति नत- मस्तक होकर हिंदू बन गया था. इससे सिकंदर लोदी आगबबूला हो गया और उसने संत रैदास को पकड़कर जेल में डाल दिया था. इसके जवाब में चंवर वंश के क्षत्रियों ने दिल्ली को घेर लिया था. इससे भयभीत हो सिकंदर लोदी ने संत रैदास को छोड़ा था.
संत रैदास जी का यह दोहा देखिए-
बादशाह ने वचन उचारा । मत प्यारा इस्लाम हमारा ।।
खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।।
जब तक राम नाम रट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।
जब इस्लाम धर्म स्वीकारे । मुख से कलमा आपा उचारै ।।
पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।
तो इस दोहे में भी संत रैदास जी ने लिखा है कि सिकंदर चाहता था मुझे कि मैं इस्लाम धर्म ग्रहण कर लूँ. और अगर मैं इस्लाम धर्म ना स्वीकार करूं तो मुझे मार दिया जाये. जब तक मैं राम नाम की रट लगाता रहूँ, मेरा दाना पानी बंद रहे. जब कलमा का जाप करूं , नमाज अदा करूँ तो मैं दाना पानी प्राप्त करूं.
लेकिन सिकंदर के सामने संत रैदास जी नहीं झुके थे और हुआ यह था कि जो लोग हिन्दू से मुस्लिम बने थे तथा मुस्लिम लोग भी संत जी से आकर्षित होकर हिन्दू बनने लगे थे. तब राज सिकंदर ने अपना सारा गुस्सा इन मासूम लोगों पर निकाला. जो हिन्दू बन रह थे उन्हें मौत की सजा दी गयी. इस बात से दुखी होकर, संत रैदासजी हमेशा के लिये जंगलों में चले जातेहैं. ताकि मासूम लोगों की जानबचीर हे.
लेकिन उन्हों ने इस्लाम धर्म ग्रहण नहीं किया था.
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