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पोरस बहादूर था, लेकिन देशभक्त नहीं

सिकंदर और पोरस

सिकंदर और पोरस – पोरस का जिक्र जब भी होता है तो सिकंदर का नाम जरूर आता है। क्योकि लोग पोरस को तब से ही जानने लगे थे जब उसने युद्ध में सिकंदर को हर दिया।

क्या है सिकंदर और पोरसर का इतिहास

इतिहास के पन्नों को लेकर ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में बताया जाता है कि सिकंदर को पोरस के साथ युद्ध में जीत हासिल हुई थी और यह बात तो आप-हम बखूबी जानते है कि हम ईरानी और और चीनी इतिहास के नजरिये को भी गलत नहीं ठहरा सकते।

सिकंदर और पोरस

ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में साफ तौर पर यह लिखा गया है कि सिकंदर ने पोरस को हरा दिया था। लेकिन अगर जीत सिकंदर की हुई तो वह अपनी जीत के बाद मगध क्यों नहीं गया। इस बात का जवाब ऐतिहासिक किताब में नहीं किया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस किताब के लिखने वाले ग्रीस यूनानियों ने सिकंदर की ऐसा तो नहीं कि इस किताब को लिखने वाले ग्रीस यूनानियों ने सिकंदर की हार तो पोरस की हार बताकर पेश किया था। अब इस बात का खुलासा तो केवल ईरानी, चीनी विवरण और भारतीय इतिहास के विवरणों को पढ़ने के बाद ही लगाया जा सकता है।

इस सभी सवालों के जवाब में जो रहस्य सामने आया, वो था… कि हां सिकंदर को पोरस ने हरा दिया था। दूसरे सभी राज्यों को जितने के बाद जब सिकंदर, पोरस के राज्य पहुंचा तो पोरस ने कहा कि वह बिना युद्ध लड़े हार नहीं मानेगा। बस फिर क्या सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध हुआ. पोरस ने सिंकदर के सिपाही को जमकर टक्कर दी, जिसके बाद सिकंदर के सिपाहियों ने हार मानकर युद्ध को जारी रखने से मना कर दिया।

राजा पोरस बहादुर होने के साथ-साथ स्वार्थी भी था

सिकंदर और पोरस

हमारे इतिहासकार पोरस को एक बहादुर राजा तो मानते है पर इस बात का जिक्र कहीं किसी ने नहीं किया है कि पोरस बहादुर होने के साथ ही बेहद स्वार्थी राजा भी था। इतिहास के मुताबिक जब सिकंदर को रावी और व्यास नदी के बीच पड़ने वाले हिंदु गणराज्यों से कड़ी टक्कर मिली तो पोरस ने उनके विरूद्ध सिकंदर की सहायता की। जब कठ गणराज्य के लोगो से सिकंदर का मुकाबला हुआ तो वो इतनी बहादुरी से लड़े कि पोरस को 20 हजार सैनिक लेकर सिकंदर की सहायता करने आना पड़ा। कठों के साहस से युनानी सेना के पसीने छूट गए थे। इस हमले के बाद जब सिकंदर की सेना ने कठों का किला जीता, अधिकतर कठ वहां से भाग चुके थे, ताकि सिकंदर पर एकजुट होकर छापामार हमला कर सके।

कठों के विरूद्ध लड़े गए सिकंदर के हमले में पोरस का सिकंदर की सहायता करना इस बात का साफ प्रतीक रहा कि वह कोई देशभक्त शासक नहीं था, बल्कि वह एक स्वार्थी राजा था।

कब और कैसे हुई पोरस की मृत्यु

पोरस की मौत को लेकर कई अवधारणायें लगाई जाती है। किसी का कहना है कि पोरस की मृत्यु विषकन्या के विष से हुई थी। तो किसी का कहना है कि सिकंदर के सेनापति युदोमोस ने राजा पोरस को सन् 321 से 315 ईसापूर्व के बीच मार दिया था। इसी के साथ कई लोगों की यह भी अवधारणा है कि पोरस को चाणक्य ने मरवाया है, क्योकि वे जानते थे कि आगे जाकर वह चंद्रगुप्त के विजयी अभियान में रूकावट बन सकता है।

ये है कहानी सिकंदर और पोरस की !