पूरी की जगन्नाथ रथ यात्रा – उड़ीसा राज्य के पुरी में जगन्नाथ मंदिर में रथ यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं।
इस साल 14 जुलाई को पूरी की जगन्नाथ रथ यात्रा का आरंभ होगा। ये यात्रा नौ दिन तक चलती है और इसमें भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ निकलता है।
हिंदू धर्म में तीर्थस्थलों का बहुत महत्व है और जगन्नाथ मंदिर चार धाम यात्रा में से एक है। इस धाम में दर्शन के लिए और रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से लोगों की भीड़ उमड़ती है। हर साल आयोजित होने वाली इस रथयात्रा को देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु भी आते हैं।
पूरी की जगन्नाथ रथ यात्रा का वर्णन
हर साल पूरी की जगन्नाथ रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ कि साथ दो और रथ निकलते हैं जिनमें उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्ति रखी जाती है।
भगवान कृष्ण के स्वरूप जगन्नाथ जी के साथ रुक्मिणी या राधा की मूर्ति ना होने का सवाल भी मन में उठता है। आपके मन में भी कभी ना कभी ये सवाल जरूर उठता होगा कि भगवान कृष्ण की पूजा में उनकी प्रिय राधा या उनकी पत्नी रुक्मिणी क्यों नहीं होती है ?
तो चलिए जानते हैं इस सवाल के पीछे छिपा सच क्या है ?
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार द्वारका में श्री कृष्ण नींच में अचानक से राधे का नाम पुकारने लगे। उस समय महल में जितनी भी रानियां मौजूद थीं उन्हें ये नाम सुनकर आश्चर्य हुआ। सुबह होने पर रुक्मिणी ने सभी रानियों से पूछ लिया कि ऐसा सुना है वृंदावन में राधा नाम की एक गोपी है जिससे श्रीकृष्ण अत्यंत प्रेम करते हैं और उसे अब तक भुला नहीं पाए हैं।
इस प्रश्न पर रोहिणी ने बताया कि मैं राधे के बारे में बताने को तैयार हूं लेकिन मां सुभद्रा को महल की पहरेदारी करनी होगी और श्रीकृष्ण के साथ-साथ किसी को भी अंदर आने की इजाजत नहीं हो। तब सुभद्रा महल की पहरेदारी पर बैठ गई और जैसे ही बलराम और कृष्ण अंदर की ओर आते दिखाई दिए तो सुभद्रा ने श्रीकृष्ण को कारण बताते हुए उन्हें द्वार पर ही रोक लिया।
इस बात को सुनते ही बलराम और श्रीकृष्ण के मन में प्रेम रास भाव उत्पन्न हो गया और उनके साथ सुभद्रा भी इस प्रेम कहानी में गुम हो गई। तीनों कहानी में ऐसे लीन हुए कि उप्हें किसी के हाथ-पैर भी स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दिए। तभी वहां नारद जी आ पहुंचे और सभी पहले जैसे हो गए। तक नारद जी ने कहा कि हे प्रभु आप तीनों को ही जिस महाभाव में लीन मूर्तिस्थ रूप के दर्शन मैंने किए हैं, वह सामान्य जनों को भी होना चाहिए क्योंकि ये प्रेम का बहुत ही पवित्र रूप है।
बस, तभी से भगवान जगन्नाथ जी के साथ-साथ माता सुभद्रा और बलराम जी की भी पूजा होती है।
पूरी की जगन्नाथ रथ यात्रा में भी तीनों का ही रथ निकलता है। श्रद्धालु इस रथयात्रा में शामिल होने के लिए सालभर इंतजार करते हैं। हर साल आषाढ़ के महीने में जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा निकलती है जिसमें मंदिर में स्थापित तीनों देवी-देवताओं की मूर्तियों को विशाल रथ में बैठाकर यात्रा निकाली जाती है। इस रथ यात्रा में सबसे पहले भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलराम जी का रथ निकलता है और उसके बाद उनकी बहन सुभद्रा का और फिर स्वयं जगन्नाथ के रूप में पूजनीय भगवान कृष्ण का रथ निकलता है।
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