ऑपरेशन मेघदूत का नाम शायद बहुत ही कम भारतीय जानते है.
ये एक विडम्बना ही है कि आजकल छोटी मोटी घटनाओं के बारे में भी इतना लिखा या दिखाया जाता है कि वो पक्के रूप से हमारे दिमाग पर छप जाती है. लेकिन ऐसी घटनाएँ जो हर हिन्दुस्तानी को पता चलनी चाहिए इतिहास के पन्नों में ही कहीं दफ़न हो जाती है.
13 अप्रेल के दिन दुनिया के सबसे खतरनाक माने जाने वाले युद्धस्थल पर भारतीय सेना ने पड़ोसी देश पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया था.
ये बात 1984 की है. सियाचीन ग्लेशियर तब भी सैनिकों की कब्रगाह कहलाता था जिस प्रकार आज कहलाता है. उस समय तो वहां परिस्थितियां और भी भीषण थी.
आजकल तो उपकरणों, आधुनिक साजो सामान की बदौलत सियाचीन में रहना कुछ हद तक मुमकिन है. आज से 30 वर्ष पूर्व उस ज़माने के उपकरणों और कपडे, वर्दी में वहां ना सिर्फ रहना अपितु सुरक्षा के लिए दिन रात चौकन्ना रहना ये सब सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है.
1894 में सियाचीन ग्लेशियर के Saltoro Ridge पर पाकिस्तानी सेना कब्ज़ा कर उस स्थान को पाकिस्तान के नियंत्रण में लेना चाहती थी.
भारतीय सेना को इस बात का पहले ही पता चल गया. सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट के जवानों ने पाकिस्तानी सेना से लोहा लिया और Saltoro Ridge पर भारतीय सेना का नियंत्रण बरक़रार रखा.
Saltoro Ridge के इस मिशन को ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया गया. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के जवान शहीद भी हुए.
13 अप्रैल के दिन भारतीय सेना ने Saltoro Ridge पर अपना नियंत्रण लिया था और उसके बाद से आजतक ये स्थान भारत के नियंत्रण में ही है.
सुरक्षा की दृष्टि से Saltoro Ridge एक महत्वपूर्ण स्थान है. हर साल 13 अप्रैल को सियाचीन दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनकी शाहदत को याद किया जाता है.
सियाचीन दिवस सियाचीन में तैनात सैनिकों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, इस दिन सियाचीन के नीचे के इलाके में रहने वाले स्थानीय लोग भी उत्सव मानते है और शहीद सैनिकों की याद में रैली और समारोह करते है.
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