कभी संस्कृत राज दरबारों की भाषा हुआ करती थी.
पर भारत पर हजारों साल के मुस्लिम और फिर ब्रिटिश शासन के परिणाम स्वरूप यह भाषा अब सिर्फ धर्म ग्रंथों की भाषा बनकर रह गई है. ऐसे में श्यामजी उपाध्याय की संस्कृत को उसकी खोई हुई हैसियत दिलाने का प्रयत्न तारीफ के काबिल है.
श्यामजी उपाध्याय पेशे से वकील हैं और उन्होंने अपने इस पेशे को संस्कृत के संरक्षण का हथियार बना लिया है. वराणसी निवासी श्यामजी उपाध्याय पिछले 38 सालों से अपने सभी मुकदमे देववाणी संस्कृत में लड़ रहे हैं. यही नहीं श्यामजी अदालत के लगभग सभी काम जैसे शपथपत्र, प्रार्थना पत्र, दावा, वकालतनामा जैसे दस्तावेज संस्कृत में ही पेश करते हैं.
श्यामजी उपाध्याय साल 1978 में वकील के रुप में रजिस्टर्ड हुए थे. तब से वे अपने सभी केस संस्कृत में लड़ते आ रहे हैं. श्यामजी के इस संस्कृत प्रेम की वजह से कभी-कभी विपक्षी वकील या जज को परेशानी भी होती है. ऐसी स्थिति में श्यामजी उपाध्याय अपनी दलील हिंदी में पेश करते हैं. संस्कृत को बढ़ावा देन के लिए श्यामजी उपाध्याय हर रोज कई छात्रों को नि:शुल्क संस्कृत की शिक्षा भी देते हैं. इनके छात्रों में कई वकील भी शामिल हैं.
श्यामजी एक बेहतरीन लेखक भी हैं. अबतक इनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनका नाम है ‘भारत-रश्मि’ और ‘उद्गति’. इसक अलावा इन्होंने अन्य 60 से अधिक रचनाएं की हैं जो कि अभी अप्रकाशित हैं. श्यामजी की प्रकाशित रचना ‘भारत-रश्मि’ की एक खासियत यह भी है कि इसमें उन्होंने कहीं भी क्रिया या सर्वनाम का प्रयोग नहीं किया है.
श्यामजी उपाध्याय का दावा है कि वे देश के इकलौते ऐसे वकील हैं जो अपना मुकदमा संस्कृत में लड़ते हैं. श्यामजी के संस्कृत के प्रति लगाव के सम्मान में कचहरी के जज भी इनके अधिकांश मुकदमों का फैसला संस्कृत में ही सुनाते हैं. संस्कृत के विकास में योगदान के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से उन्हें साल 2003 में ‘संस्कृतमित्रम’ नामक राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज चुका है.
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