श्रीराम और लक्ष्मण की मृत्यु – इस धरती पर जो जन्म लेता है वह मृत्यु तक भी एक न एक दिन पहुंचता है.
यह एक चक्र है जिससे हर प्राणी को गुजरना पड़ता है वह फिर रामायण के नायक भगवान श्रीराम ही क्यों न हों. श्रीराम भी प्रकृति के इस नियम से अवगत थे इसलिए जब पृथ्वी पर उनका समय पूरा हो गया तो उन्होंने खुद ही मृत्युलोक से अपने प्रस्थान की व्यवस्था कर दी.
भगवान श्रीराम के मृत्यु की कथा पद्म पुराण में दर्ज है.
एक दिन काल का दूत एक वृद्ध संत का भेष धरकर अयोध्या में श्रीराम के दरबार में पहुंचा. वृद्ध संत ने श्रीराम से अकेले में चर्चा करने का अनुरोध किया. राम जी जानते थे कि यह संत काल की दूत है जो उनसे यह कहने आया है कि उनका पृथ्वी पर समय पूरा हो चुका है. राम उस संत को एक कमरे में ले गए और अपने छोटे भाई लक्ष्मण को यह आज्ञा दिया की यदि कोई भी उनकी चर्चा में विघ्न डालने की कोशिश करे तो उसे मृत्यु दंड दिया जाए.
राम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण खुद ही द्वार पर पहरेदारी करने लगे. इतने में दुर्वासा ऋषि आ पहुंचे और श्रीराम से मिलने की बात कही.
लक्ष्मण के मना करने पर ऋषि दुर्वासा ने चेतावनी दी की यदि उन्हें राम से ना मिलने दिया गया तो वे अयोध्या के राजा राम को श्राप दे देंगे.
अपने क्रोध के लिए विख्यात दुर्वासा ऋषि की चेतावनी सुनकर लक्ष्मण धर्मसंकट में पड़ गए. वे नहीं चाहते थे कि उनके भ्राता राम पर किसी तरह की आंच आए और उन्हें ऋषि दुर्वासा के कोप का शिकार बनना पड़े. भाई राम को दुर्वासा ऋषि के क्रोध से बचाने के लिए लक्ष्मण ने खुद ही मृत्यदंड का आलिंगन करना उचित समझा और वे उस कक्ष में प्रवेश कर गए जहां श्रीराम वृद्ध संत से वार्तालाप कर रहे थे.
अपने भाई द्वारा चर्चा में बाधा पड़ते देख राम धर्मसंकट में पड़ गए.
वे अपनी आज्ञा का खुद उलंघन नहीं कर सकते थे पर उन्होंने अपने भाई को मृत्युदंड देने के बजाए देश निर्वासित करने का दंड दिया. लक्ष्मण के लिए देश निकाले का दंड मृत्युदंड से भी अधिक कठोर था. लक्ष्मण अपने भाई के बिना एक क्षण भी जीना नहीं चाहते थे और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे सरयू में जल समाधि लेकर अपने प्राण त्याग देंगे. इस तरह लक्ष्मण ने अपने जीवन का अंत कर अनंत शेष का अवतार लिया और विष्णु लोक चले गए.
जिस तरह लक्ष्मण श्रीराम के बिना नहीं रह सकते थे उसी प्रकार राम भी लक्ष्मण के बिना नहीं रह सकते थे. श्रीराम और लक्ष्मण एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते.
लक्ष्मण के जाने के बाद वे बेहद उदास रहने लगे. कुछ दिन बाद ही उन्होंने भी निश्चय कर लिया कि वे भी इस संसार को अब त्याग देंगे. इस तरह श्रीराम ने अपना राज-पाट अपने पुत्रों और अपने भाई के पुत्रों को सौंपा और सरयु की ओर प्रस्थान कर गए.
भाई लक्षमण की तरह श्रीराम भी सरयू के भीतर आगे बढ़ते गए और उसके मध्य में जाकर जल समाधि ले ली. इस तरह श्रीराम अपने मानवीय रूप को छोड़ अपने वास्तविक स्वरूप को धारण कर लिया जो की भगवान विष्णु का था.
विष्णु का रूप धारण कर श्रीराम वैकुंठ धाम को प्रस्थान कर गए.
इस तरह से हुई थी श्रीराम और लक्ष्मण की मृत्यु !
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