हिन्दू धर्म के दो सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली दो धार्मिक किताब रामायण और महाभारत में सनातन धर्म की ऐसी कई कथाएँ दर्ज की हुई हैं, जो बड़ी दिलचस्प हैं.
त्रेता युग में हुई रामायण काल की सम्पूर्ण घटना श्रीराम और उनके चरित्र से जुड़े कई पहलुओं पर लिखी गयी थी. कहा जाता हैं कि श्रीराम भगवान् विष्णु के अवतार थे और उन्होंने ने कई राक्षसों और दैत्यों का उद्धार किया था.
ऐसा ही किस्सा एक बार एक राक्षसी के साथ भी हुआ जिसका नाम ताड़का था. त्रेता युग में राक्षसों का बहुत आतंक था.
उस समय ऋषि मुनियों द्वारा संपन्न किये जाने वाले यज्ञ में हमेशा व्यवधान डाल कर उनका यज्ञ कभी पूरा नहीं होने देते थे. राक्षस उनके यज्ञ कुंड में कभी मांस के टुकड़े डाल देते थे या फिर कभी उसमे रक्त फेक देते थे. जब राक्षसों का आतंक बहुत बढ़ गया तो सभी ऋषि मुनि एकत्रित हो कर उस समय के वरिष्ट ऋषि विश्वामित्र के समक्ष अपनी समस्या लेकर पहुचे.
उस समय ऋषि विश्वामित्र अयोध्या के प्रमुख ‘राजा दशरथ’ के पुत्र राम और लक्ष्मण को आयुध शिक्षा दे रहे थे. जब सभी ऋषि वहां पहुचे और अपनी व्यथा सुनाई तो उन ऋषियों की बात सुन कर दोनों युगल राजकुमार राम और लक्ष्मण ने कहा कि महर्षि आप अपना यज्ञ पूरा कीजियें हम आप के यज्ञ की रक्षा करेंगे. दोनों राजकुमार यज्ञ की रक्षा करने लगे और सभी ऋषि वरिष्ट ऋषि विश्वामित्र के साथ यज्ञ पूर्ण करने लगे.
यज्ञ के दौरान ही वहाँ अत्यधिक बड़े आकार और कुरूप चेहरें वाली राक्षसी ताड़का पहुची. आनंद रामायण कहा जाता हैं कि ताड़का नाम की यह राक्षसी पहले स्वर्ग की अप्सरा हुआ करती थी लेकिन एक श्राप के चलते वह राक्षसी बन गयी.
राक्षसी ताड़का सुकेतु यक्ष की पुत्री थी.
एक बार जब ताड़का युवा अवस्था में थी, तब यज्ञ कर रहे ऋषि अगत्स्य को उसने बहुत सताया था और इसी बात से नाराज़ होकर ऋषि अगत्स्य ने ताड़का को एक राक्षसी होने का श्राप दे दिया जिसके कारण वह एक सुन्दर अप्सरा से एक कुरूप राक्षसी में परिवर्तित हो गयी थी. इस के बाद ताड़का एक राक्षसी का जीवन जीते हुए एक राक्षस से विवाह भी किया और दो पुत्र मारीच और सुबाहु को भी जन्म दिया. ऋषि अगत्स्य ने कुछ समय बाद ताड़का से कहा कि त्रेता युग में भगवान् विष्णु श्री राम के रूप में जब जन्म लेंगे तब उनके हाथो ही तेरा उद्धार संभव हैं.
नियति की इस बात को त्रेता युग में श्री राम ने पूरा किया और अपने एक तीर से राक्षसी ताड़का का वध कर के उसे अप्सरा के अपने रूप में वापस ला दिया और राक्षसी ताड़का से एक सुंदर अप्सरा बन कर स्वर्ग की ओर चली गयी. इसके बाद ताड़का से जन्मे उसके दोनों पुत्र मारीच और सुबाहु का वध भी श्रीराम के हाथों हुआ और दोनों मुक्त हुए थे.
इस तरह महर्षि विश्वामित्र के सानिध्य में रह कर श्रीराम और लक्ष्मण ने सभी ऋषियों की राक्षसों की रक्षा किया.