धर्म और भाग्य

क्‍यों किया जाता है तुलादान, क्या हैं इसके फायदे

भगवान श्रीकृष्‍ण की लीलाओं में तुलादान लीला भी शामिल है। माना जाता है कि इस तुलादान लीला में भगवान कृष्‍ण ने तुलसी के महत्‍व के बारे में बताया है।

इस तुलादान लीला से प्रेरित होकर भगवान द्वारकाधीश के साथ ही एक और मंदिर का निर्माण किया था जिसे तुलादान मंदिर के नाम से जाना गया।

क्‍यों पड़ा तुलादान नाम

इस मंदिर का नाम काफी अलग है। आप भी सोच रहे होंगें कि आखिर इस मंदिर को ऐसा नाम क्‍यों दिया गया। दरअसल, किवदंती है कि इसी स्‍थान पर सत्‍यभामाजी ने श्रीकृष्‍ण का तुलादान किया था। इस मंदिर में भगवान कृष्‍ण की मूर्ति के ठीक सामने एक विशाल तराजू रखा है जिस पर उस दौरान तुलादान किया जाता था।

श्रीकृष्‍ण ने क्‍यों किया था तुलादान

इस मंदिर में श्रद्धज्ञलु अपने वजन के बराबर अन्‍न, घी, चीनी और तेल का दान करते हैं। किवदंती है कि भगवान कृष्‍ण को पूरी तरह से अपना बनाने का और उन पर एकाधिकार पाने की लालसा में उनकी पटरानी सत्‍यभामा ने नारद मुनि को श्रीकृष्‍ण का दान कर दिया और जब नारद जी कृष्‍ण जी को अपने साथ लेकर जाने लगे तब जाकर सत्‍यभामा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्‍होंने नारदजी से भगवान कृष्‍ण को वापिस पाने का उपाय पूछा।

तुलादान का बताया उपाय

सत्‍यभामा को इस विपत्ति से निकालने के लिए नारद जी ने उन्‍हेंश्रीकृष्‍ण के वजन के बराबर सोना दान करने को कहा। यहां भी सत्‍यभामा के मन में अहंकार आ गया और उसने श्रीकृष्‍ण को सोने से तोलना शुरु किया। खजाने से पूरा सोना तुला पर डालने के बाद भी श्रीकृष्‍ण जी का पलड़ा भारी था। ये सब देखकर उनकी पटरानी का अहंकार टूट गया। ये सब देखते हुए रुक्‍मणि जी ने सत्‍यभामा से तुला में सोने के ऊपर तुलसी का पत्ता रखने को कहा। तुला पर तुलसी का पत्ता रखते ही सोने का वजन श्रीकृष्‍ण के बराबर हो गया। इसी कथा के संबंध में तुला मंदिर बनवाया गया था।

तुलादान लीला के लाभ

तुलादान के बारे में कहा जाता है कि इस दान को करने से सभी ग्रहों का दान होता है। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार हमारे शरीर के हर भाग पर किसी ना किसी ग्रह का प्रभाव होता है और तुलादान करने से सीाी ग्रहों के निमित्त दान हो जाता है। इस तरह जिस भी ग्रह का दोष आप पर लगा होता है वो दूर हो जाता है। तुलादान करने वाले व्‍यक्‍ति की सेहत दुरुस्‍त रहती है और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्‍ति होती है।

तुलादान लीला – पौराणिक कथाओं में भी तुलादान का उल्‍लेख मिलता है। कहा जाता है तुलादान महादान के बराबर होता है। जो भी व्‍यक्‍ति इस दान को करता है उसे विष्‍णु लोक की प्राप्‍ति होती है। प्राचीन समय में अमीर और संपन्‍न वर्ग के लोग सोने से तुलादान किया करते थे। अब अनाज से भी तुलादान किया जाता है। मान्‍यता है कि ब्रह्माजी ने भगवान विष्‍णु के कहने पर तीर्थों का महत्‍व तय करने के लिए तुलादान करवाया था। तुलादान को तीर्थयात्रा के बराबर बताया गया है।

अगर कोई व्‍यक्‍ति तीर्थयात्रा नहीं कर सकता तो वो तुलादान से भी उसके बराबर पुण्‍य प्राप्‍त कर सकता है।

Parul Rohtagi

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Parul Rohtagi

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