जब भी श्रीकृष्ण का नाम लिया जाता हैं, तो राधा का नाम खुद ही हमारी ज़ुबान पर आ जाता हैं, लेकिन कई तथ्य ऐसे हैं जो इस बात पर सवाल उठाते हैं कि क्या राधा, श्रीकृष्ण के युग में सचमुच थी या उस वक़्त से जुड़ी कहानियों की एक किरदार मात्र थी?
वैष्णव साहित्य की बात करे तो श्रीकृष्ण के साथ राधा का होना कोई कल्पना नहीं वास्तविकता हैं.
इसमें यह भी बात कही गयी हैं कि राधा आदि शक्ति का रूप थी जो श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को पूर्ण करती थी.
लेकिन राधा का किरदार यदि इतना महत्वपूर्ण था तो इसका वेद-व्यास द्वारा लिखी गयी महाभारत में कही भी इनका उल्लेख क्यों नहीं मिलता हैं,न ही श्री मद्भागवत की मूल पुस्तक में राधा का उल्लेख हैं.
लेकिन इन तथ्यों के अलावा ब्रह्मवर्त पुराण, कवि जयदेव और गीत गोविन्द जैसे कई और साहित्य हैं जिनमे राधा को श्रीकृष्ण की प्रेयसी के रूप में दिखाया गया और श्रीकृष्ण को मानने वाले भक्त भी राधा के बिना श्रीकृष्ण की कल्पना ही नहीं करते हैं.
ब्रह्मव्रत पुराण की एक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण जो भगवान् विष्णु का एक अवतार थे, गोकुलधाम में रहते थे. कहा जाता हैं कि इस स्थान की महता ऐसी थी कि इसे भगवान विष्णु के निवास स्थान बैकुंठ धाम से अधिक पवित्र कहा जाता था. इसी गोकुलधाम में विराजा नाम की महिला थी. श्री कृष्ण और विराजा के प्रेम से राधा विराजा की स्वाभाविक शत्रुता थी.
एक बार जब विराजा श्री कृष्ण से मिलने जा रही थी, तो राधा उनके पीछा करते हुए गोकुलधाम तक पहुची, पर दरवाज़े पर खड़े द्वारपाल शिर दामा ने राधा को रोक दिया और अंदर जाने की अनुमति नहीं दिया. इस बात से नाराज़ हो कर राधा ने उस द्वारपाल को असुर होने का श्राप दिया साथ ही श्री कृष्ण को भी पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया. राधा के इस श्राप से क्रोधित द्वारपाल श्री दामा ने भी राधा को पृथ्वी में जन्म लेकर चरित्रहीन स्त्री के रूप में मशहूर होने का श्राप दे डाला.
एक दुसरे के इस क्रोध के बाद राधा और श्री दामा दोनों श्री कृष्ण के पास गए और इस श्राप से मुक्त करने का निवेदन किया. श्रीकृष्ण दोनों की बात मानते हुए उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया और कहा कि श्रीदामा तुम असुरराज बनोगे और राधा पृथ्वी पर तुम हमेशा मेरे साथ ही रहोगी.
इस कथा के बाद ही श्री कृष्ण और राधा की अलौकिक प्रेमकहानी इस रूप में लोगो तक आई और इसी तरह से उनके प्रेम के कई किस्से बनने लगे.
भले ही हर कोई अलग विचारधारा को मानने वाला क्यों न हो लेकिन वैष्णव धर्म की प्रेम मार्गी शाखा के अनुसार श्री कृष्ण और राधा का यही रूप सबसे प्रचलित हैं.