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देश के स्वाभिमान की रक्षा करते हुए श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया !

श्री गुरु गोविंद सिंह जी

श्री गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरू हैं।

सिख समाज इस पर्व को धूमधाम से मनाता है।

इनका जन्म पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सन् 1666 को जो की 5 जनवरी 2017 गुरुवार को आ रही है। को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेग बहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत चखकर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए।

कश्मीरी पंडितों को बचाते हुए श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने दिल्ली के चाँदनी चैक में सन 1675 मे बलिदान दिया।

इसके पश्चात श्री गुरु गोविंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए।

उन्होंने सभी जातीयों को एक किया एवं उंच-नीच को समाप्त करके सभी का समान माना एवं समाज में एकता स्थापित की और उनमें स्वभिमान की भावनाओं को जाग्रत किया।

श्री गुरु गोविंद सिंह जी के बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह बड़े पुत्र थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में विरता से युद्ध लडते हुए शहीद हुए थे। और छोटे पुत्रों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने जीवित दीवारों में चुनवा दिया था। आपने कई किलों का निर्माण भी करवाया एवं पौंटा साहिब में साहित्यीक कार्यो को किया।

स्वयं की शक्तियों से श्री गुरू्ग्रंथ साहिब का उच्चारण करते एवं उसका अर्थ श्रद्धालुओं को बताते जाते थे एवं श्री मनी सिंह जी से गुरूवाणी का अर्थ लिखा करते थे। इस तरह पांच महिनों में गुस्वाणी का अर्थ उन्होने संपूर्ण किया था।

देश के धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए उन्होने कई प्रयास एवं युद्ध किए। देश को आंतकियो से सुरक्षित किया एवं धर्म की रक्षा के साथ देश के सम्मान को भी बना रखा। श्री गुरु गोविंद सिंह जी नांदेड में (श्री हुजूर साहिब) में गुरुग्रंथ साहिब को गुरु का दर्जा देते हुए और इसका श्रेय भी प्रभु को देते हुए कहते हैं- आज्ञा भई अकाल की तभी चलाइयो पंथ, सब सिक्खन को हुक्म है गुरू मान्यो ग्रंथ।

42 वर्ष की आयु तक श्री गुरु गोविंद सिंह जी अत्याचार का डट कर मुकाबला किया एवं इस तरह 1708 में वे भी सचखंड गमन हो गए। देश के स्वाभिमान एवं शान की रक्षा करते हुए उन्होने अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया।