दोस्तों हम में से लगभग ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि भगवान शिव के 2 पुत्र थे.
गणेश और कार्तिक. लेकिन ये सच नहीं है, क्योंकि भगवान शिव के दो नहीं बल्कि 3 पुत्र थे. जी हां दोस्तों आज हम आपको भगवान शिव के इसी तीसरे पुत्र की अनोखी कहानी को बता रहे हैं, जो बेहद रोचक और दिलचस्प है.
देवों के देव महादेव के तीसरे पुत्र की कहानी उस समय शुरू हुई, जब मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया.
ये तो आप सब जानते हैं कि महिषासुर को भगवान शिव ने वरदान दिया था, जिसका वो गलत उपयोग करता था. मानव जाति के साथ-साथ देवी – देवताओं को भी बहुत परेशान किया करता था.
महिषासुर की एक बहन थी, जिसका नाम था महिषि. अपने भाई की मृत्यु की वजह से महिषि सभी देवी – देवताओं से नाराज रहती थी. लेकिन इसके बावजूद महिषि ने ब्रहमा जी को प्रसन्न करने की खातिर तपस्या की. ब्रह्मा जी उसकी तपस्या से खुश होकर अभेद का वरदान दे दिये. उसे विष्णु और शिव की मिली-जुली शक्ति प्राप्त थी. इस वरदान को पाकर महिषि भी अपने भाई की तरह तानाशाही करने लगी. जिससे भगवान विष्णु काफी आहत हुए और उन्होंने मोहिनी का रूप धारण किया.
मोहिनी के रूप में विष्णु भगवान बेहद खूबसूरत थे. वो सभी राक्षसों को रिझाया करते थे. लेकिन इस बार मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने शिव को रिझा लिया. तब जाकर भगवान शिव और मोहिनी के मिलन से शिवजी के तीसरे पुत्र का जन्म हुआ. उनके इस तीसरे पुत्र का नाम अय्यप्पन रखा गया. राजा पंडलम ने अय्यप्पन को गोद ले लिया था.
बड़े होकर भगवान के इसी तीसरे पुत्र अय्यप्पन ने महिषि का वध किया. केरला के एक जिले में अय्यप्पन को भगवान के रुप में पूजा जाता है.
केरल के सबरीमाला में मुख्य आकर्षण का केंद्र है ये अय्यप्पा मंदिर. इनका आशीर्वाद लेने दुनिया भर से भक्तगण यहां आते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाला खाली हाथ वापस नहीं जाता. इसे तीर्थ स्थल के रूप में भी जाना जाता है. तीर्थ यात्रा के लिए नवंबर महीने में खुलता है यह मंदिर. यात्रा जनवरी के मकर संक्रांति में खत्म होती है. कहा जाता है कि इस मंदिर में जाने वाले भक्त 15 दिन पहले से शाकाहारी जीवन जीते हैं. मांस – मदिरा का सेवन बंद कर देते हैं. इसके बाद हीं वो अय्यप्पा भगवान के दर्शन कर पाते हैं.
मंदिर तक पहुंचने के लिए जंगलों के रास्ते पैदल चलकर सफर पूरा करना पड़ता है. तीर्थयात्रा के दिनों में चारों ओर मंत्रों गुंजन होता है. इस दौरान यहां मंडल पूजा का उत्सव भी जोर – शोर से मनाया जाता है. यहां की सोने की सीढ़ियां मंदिर के मुख्य आकर्षण का केंद्र है.
मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के लिए 18 पवित्र सीढ़ियों पर चढ़कर जाना होता है. इन 18 सीढ़ियों कि अपनी अलग-अलग मान्यताएं हैं.
पहली 5 सीढ़ियां मनुष्य की पांच इंद्रियों को दर्शाती है और अगली 8 सीढ़ियां मनुष्य की भावनाओं को बताती हैं. जबकि अगली 3 सीढ़ियां मानवीय गुण और अंत की 2 सीढ़ियां अज्ञान और ज्ञान के प्रतीक के रूप में जानी जाती है.
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