स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, कहने को तो ये बाबाजी द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य है लेकिन जिस तरह की बातें ये आजकल कर रहे है उससे तो लगता है कि इन्हें दिमागी इलाज़ की सख्त ज़रूरत है.
शंकराचार्य स्वरूपानंद पहले भी कई बार अपने ऊल जुलूल बयानों के चलते विवादों में आ चुके है. विवादों में आने के बाद और इतनी जग हंसाई के बाद भी लगता है उन्हें अब तक समझ नहीं आया है.
पुराने समय में शंकराचार्य की बनने वाले मठाधीश बहुत ही ज्ञानी और विचारक किस्म के हुआ करते थे. जिन्हें संस्कृति और शास्त्रों का अच्छा ज्ञान होता था. अब तो लगता है कि शायद सबसे मूढ़ को शंकराचार्य बना दिया जाता है.
कुछ समय पहले स्वरूपानंद ने साईं बाबा की पूजा करने वालों को स्वर्ग नहीं मिलता जैसी बात कही थी और विवादों में फंसे थे.
अब कुछ दिनों की शांति के बाद शंकराचार्य फिर से जोश में आ गए है.
दो दिन पहले उन्होंने एक बयान दिया जिसमे उन्होंने कहा कि महिलाओं की शनि पूजा के कारण बलात्कार होते है.
सुनकर हंसी आई न ? लेकिन ये सच है, शंकराचार्य स्वरूपानंद ने ठीक ऐसा ही कहा है. अब बताइए संतों को ज्ञान का स्रोत माना जाता है, लेकिन ऐसे संतों को क्या कहा जाए?
अभी शनि पूजा के कारण बलात्कार वाले बयान के बाद शुरू हुई गहमा गहमी ठंडी भी नहीं हुई थी कि स्वरूपानंद ने मुर्खता से भरपूर एक और बयान दे डाला.
कल ही उनका एक और बयान आया जिसमें स्वरूपानंद ने बेवकूफी की सारी हदें पार करते हुए कहा कि केदारनाथ में आई भीषण बाढ़ का कारण वो युगल थे जो देवभूमि में हनीमून मनाने जाते है.
यही नहीं इसके आगे उन्होंने ये भी कहा कि पवित्र हिन्दू स्थलों को दूषित करने की वजह से ही इस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं आती है.
अब बताइए जिस हिन्दू धर्म ने प्राचीन काल में ही कजुराहो जैसे मंदिरों का निर्माण किया उस हिन्दू धर्म में हनीमून मनाने की वजह से भगवान् नाराज़ कैसे हो सकते है.
स्वरूपानंद तो शंकराचार्य भी द्वारका पीठ के है. द्वारका मतलब कृष्ण और कृष्ण तो प्रेम भाव से भरे थे फिर क्या वो सिर्फ इसीलिए हजारों लोगों को प्राकृतिक आपदा द्वारा मार सकते है कि किसी ने पवित्र स्थल में हनीमून मनाया.
स्वरूपानंद महाराज आपके ऐसे बयानों के बाद बस आपसे एक ही सवाल है आप कौनसा माल फूंकते हो या कौनसा नशा करते हो जो इस तरह की बेसर पैर की बकवास करते हुए भी नहीं घबराते.
अब आप लोग ही देख लीजिये कि शनि पूजा से बलात्कार और हनीमून मनाने से बाढ़ आने जैसी बातें करने वाले लोगों को साधू संत कहा जाए या कुछ और?