शनिदेव का न्याय – भारतीय पंचांगों में शनैश्चरी अमावस्या को अत्यंत ही महत्व दिया गया है.
ज्योतिष में पितृगणों को अमावस्या तिथि के स्वामी और शनि को पितृलोक का अधिष्ठाता (नियंत्रक ग्रह) बताया गया है. इसलिए शनैश्चरी अमावस्या को पितरों का श्राद्ध-तर्पण करने का विधान बताया गया है. हमें ये सदैव याद रखना चाहिए कि हमें हमारे जिन पूर्वजों से संस्कार, संपत्ति, रक्त और प्रसिद्धि मिली हुई है, उन्हें इसके लिए कृतज्ञता ज्ञापित करना एक तरह से हमारा कर्तव्य ही होना चाहिए. श्राद्ध-तर्पण एक प्रकार से पूर्वजों के प्रति हमारी श्रद्धांजलि ही है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि ने अपने बाल्यकाल में ही दिखा दिया था कि वे अन्य बच्चों से अलग रहस्यमय स्वभाव के हैं.
उन्हें समझ पाना सभी के लिए मुश्किल था. वे कभी अत्यधिक क्रोधी हो जाते तो वहीं कभी एकांत में चुप भी बैठ जाया करते. उनके स्वाभिमान को ज़रा भी ठेस पहुंचते ही उन्हें बड़ी पीड़ा होने लगती. उनकी उग्रता के कारण ही उनकी किसी से पटती नहीं थी. पर अंदर से शनि अत्यंत ही भावुक एवं दार्शनिक थे. कालांतर में उन्होंने भगवान शंकर को अपना इष्ट देव बनाकर समस्त शास्त्रों का उनसे सुक्ष्मतिसुक्ष्म ज्ञान प्राप्त कर लिया.
भगवान शिव ने शनि की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें ये शिक्षा दी कि कभी अपनी शक्ति का व्यर्थ प्रदर्शन और गलत प्रयोग नहीं करना चाहिए. महादेव ने शनिदेव को पापियों का जो अनैतिक कार्य करने वालें हों उन्हें दंडित करने का कार्यभार सौंपकर शनि देव को दैवी न्याय-व्यवस्था में दंडाधिकारी बना दिया. शनिदेव का न्याय, शनि देव निष्पक्ष रूप से न्याय करने के लिए माने जाते हैं और हमारे गलत कार्यों के लिए हमें दंडित करते हैं.
ज्योतिषी को मानने वाले शनि देव की क्रूर दृष्टि से सदैव डरते आ रहे हैं. ब्रम्हावैवर्तपुराण के अनुसार बचपन से ही शनि अत्यंत ही धार्मिक स्वभाव के थे. वे हर समय श्री कृष्ण के ध्यान में मग्न रहा करते थे. वहीं, व्यसक होने पर सूर्यदेव ने उनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध कर दिया. शनि देव विवाह को अध्यात्म के मार्ग में अवरोधक मानते थे. इनकी पत्नी अत्यंत सुंदर एवं साध्वी थीं. एक बार वे सज-धज कर अपने पति के समक्ष पहुंची पर जब शनि देव ने उनकी तरफ नहीं देखा तो इससे गुस्साकर उन्होंने शनि देव को श्राप दे दिया. उन्होंने शनि देव से क्रोधित होते हुए कहा कि अब आज से आप जिस पर भी अपनी दृष्टि डालेंगे वो स्वयं नष्ट हो जाएगा. तभी से शनि देव की दृष्टि विध्वंसक हो गई.
ब्रम्हावैवर्तपुराण के गणपति जन्मखंड में उल्लेख है कि शिव-पार्वती के पुत्र गणेश का सिर शनि के दृष्टिपात करने मात्र से ही हो गया था. इसी कारण भारतीय ज्योतिष में ये सिद्धांत बनाया गया था कि शनि की दृष्टि जन्मपत्रिका के जिन भावों पर पड़ती है, उन भावों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. वहीं, शनि जन्मकुंडली के जिस भाव में बैठते हैं, वहां उनके तपोबल के कारण भारी वृद्धि होती है.
शनिदेव का न्याय – शनि देव सदा सबके साथ निष्पक्ष रूप से न्याय करने के लिए जाने जाते हैं. वे कभी किसीका बुरा नहीं करते. हमें शनि देव से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है. उनका एकमात्र संदेश यही है कि सदैव सत्कर्म करो व बुरे कर्मों से बचो. जिसने उनका ये वक्तव्य समझ लिया तो समझो उसने जीवन का यथार्थ समझ लिया.