शैलपुत्री माता की सही पूजन विधि – नवरात्रों में माता के नौ रूपों की पूजा होती है.
इसीलिए माता के त्यौहार का नाम नवरात्रि रखा गया है. वैसे शास्त्रों में बताया गया है कि यहाँ नौ रातों को माता के नौ रूपों से शक्तियां मांगी जाती हैं इसलिए भी इस पर्व को नवरात्रे बोला जाता है.
कई भक्त यह जानते ही नहीं हैं कि माता के नवरात्रे में नौ के नौ दिन अलग-अलग माता की पूजा की जाती है. तो इस तरह से नवरात्रों के पहले दिन जिन माता की पूजा होती है उनका नाम शैलपुत्री माता है.
तो आइये नवरात्रों के पावन उत्सव पर शैलपुत्री माता की सही पूजन विधि जानने का प्रयास करते हैं-
पहले जानते हैं कि माता शैलपुत्री कौन हैं?
अपने पूर्व जन्म में माता का जन्म राजा दक्ष के यहाँ हुआ था. उस जन्म में माता का नाम सती था. इनका विवाह भगवान शिव से ही हुआ था. एक बार माता अपने पिता के यहाँ यज्ञ में शामिल हुई थी. वहां पर किसी कारण से माता के सामने भगवान शिव का अपमान किया गया था. तो माता सती ने खुद को यज्ञ अग्नि में भस्म कर दिया था. अगले जन्म में माता का जन्म शैलराज हिमालय के यहाँ हुआ और इनका नाम शैलपुत्री इसलिए रखा गया था. इस जन्म में भी माता शिव की पत्नी रही हैं.
माता के व्रत के लाभ –
जो भक्त माता के नवरात्रे पर सही विधि से पूजा करता है और सही तरह से व्रत रखता है तो माता प्रसन्न होकर उस व्यक्ति के सारे दुःख खत्म करती हैं. खासकर व्यक्ति का मूलाधार चक्र माता खोलती हैं. इस तरह से वह व्यक्ति योगी बनने की शुरुआत करता है.
माता की पूजा विधि –
माता की पूजा विधि कोई बड़ी कठिन नहीं है. पहले दिन के नवरात्रे पर सभी भक्त कलश की स्थापना करें. कलश स्थापना का समय होता है और इस बार समय 6 बजकर 32 मिनट से 7 बजकर 39 मिनट तक है. आप पंडित जी से भी कलश की स्थापना करवा सकते हैं. वैसे सही विधि यही है कि किसी जानकार ब्राह्मण से कलश की स्थापना करवाई जाये.
पूजा विधि से पहले माता की चौकी पर सर्वप्रथम शैलपुत्री जी की तस्वीर रखें. गंगा जल से उसके बाद उस स्थान को शुद्ध करें. माता के सामने घी का दीया जलायें. कंडी के ऊपर हवन की सामग्री डालकर अग्नि को जलायें. इसके बाद माता की आरती करें. आरती के बाद माता को टीका लगायें. भक्त के लिए अच्छा होगा कि वह सबसे पहले गणेश भगवान की आरती करें. अग्नि में आहुति देते वक़्त आप इस मन्त्र का जाप करें- ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:
इस ध्यान मन्त्र का कम से कम 108 बार ध्यान करें-
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
पूजा के अंत में भक्त को इस मन्त्र का जाप कम से कम 108 बार जरुर करना है. जैसे-जैसे आप मन्त्र पढ़ना शुरू करते हैं तो उससे आपका मूलाधार चक्र खुलना शुरू होगा और माता का यही के बड़ा वरदान होता है. वैसे माता के मन्त्र कई हैं किन्तु इस ध्यान मन्त्र का अपना ही महत्व है.
ये है शैलपुत्री माता की सही पूजन विधि – तो माता के नवरात्रे के पहले दिन आप इस तरह से माता की पूजा करें और नेक दिल से अपनी सभी गलतियों के लिए भी माता से क्षमा मांगें. एक माँ अपने बच्चे की जरुर सुनती है बस आपकी आवाज में दम होना जरुरी है.
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