भगवान कृष्णा के जन्म और उनकी लीलाओं से तो हम सभी वाकिफ़ है।
कृष्णा के बारे में कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के अवतार थे. भगवद्गीता के अनुसार कृष्ण का इस धरती पर अवतार द्वापर युग में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि उस युग में चारों ओर पाप कृत्य हो रहे थे और धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं रह गई थी। इसलिए भगवान विष्णु ने स्वयं कृष्ण के रूप में अवतार लिया जिससे कि धर्म की पुनर्स्थापना कर सके।
खैर, ये तो थी कृष्णा के जन्म की कहानी लेकिन क्या आप जानते है कि भगवान श्री कृष्णा ने मानव शरीर को कब त्यागा था।
अगर आप नहीं जानते है तो आज हम आपको बताने जा रहे है कृष्णा की मृत्यु का राज।
भारत का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान जगन्नाथ पूरी है कृष्णा की मृत्यु का राज.
यह हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु यहां पर साक्षात विराजमान है और यहीं पर है कृष्णा की मृत्यु से जुड़ा राज। कहा जाता है कि जब भगवान कृष्णा ने धरती पर जन्म लिया तो उनकी शक्ति तो अलौकिक थी लेकिन शरीर तो मानव का ही था जो कि नश्वर होता है और एक ना एक दिन उस शरीर को त्यागना पड़ता है।
जब भगवान कृष्ण की लीला समाप्त हुई तो वे धरती पर अपने इस अवतार और देह को छोड़कर स्वधाम चले गये थे।
पांडवों ने उनकी देह का अंतिम संस्कार कर दिया, इस दौरान उनका पूरा शरीर तो जलकर नष्ट हो गया लेकिन उनका दिल जलता ही रहा।
पांडवों ने इस जलते हुए दिल को जल में प्रवाहित कर दिया तब यह लट्ठे के रूप में परिवर्तित हो गया. यह लट्ठा राजा इन्द्रदुयमं को मिल गया। उनकी आस्था भगवान जगन्नाथ में थी और वे उस लट्ठे को ले आये और भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अन्दर स्थापित कर दिया।
ये है कृष्णा की मृत्यु का राज – ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्णा का वो अंश तब से वही पर है। हालांकि हर 12 वर्ष के बाद मूर्ती बदली जाती है लेकिन वो अंश अपरिवर्तित ही रहता है।
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