महारानी लक्ष्मी बाई – भारत के आधुनिक इतिहास से हम सब परिचित है।
हम सभी जानते हैं कि भारत पर अंग्रेजों का शासन रहा हैऔर यह शासन कोई कम समय के लिए नही बल्कि लगभग 200 साल तक रहा है।इस दौरान भारत में ढेरों स्वतंत्रता संग्राम हुए। यह संग्राम उन भारतियों द्वारा लड़े गए जो अपने देश को आज़ाद देखना चाहते थे।
स्वतंत्रता के लिए किये जा रहे इन्ही प्रयासों में नाम आता है, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का। अगर इतिहास कारों की माने तो यह संग्राम अंग्रेजों के बिरुद्ध सबसे बड़ा संग्राम था। इस आन्दोलन में पूरे भारत ने हिस्सा लिया। अंग्रेजों का लगभग हर घर से बहिष्कार हुआ।
आपको बता दें की इस आन्दोलन की शुरुआत मंगलपांडे द्वारा की गई थी। लेकिन इस आन्दोलन की संरचना और कमान आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के हाँथ में थी। स्वामी दयानंद ने ही भारत के क्रांतिकारियों को यह रास्ता बताया था।
लेकिन आज हम आपको बताने वाले हैं इस आन्दोलन के एक मुख्य अध्याय यानी कि झाँसी और अंग्रेजों के युद्ध के बारे में।
आप सबको पता ही होगा कि झाँसी की रानी महारानी लक्ष्मी बाई और अंग्रेजों में झाँसी के उत्तराधिकारी को लेकर बहुत बड़ा संघर्ष हुआ था। और यह संघर्ष इतना गहरा थी कि इतिहास के पन्नो में एक अमिट छाप छोड़ गया।
आपको बता दें कि झाँसी के महाराज गंगाधर राव की म्रत्यु हो जाने के बाद झाँसी की बागडोर खुद रानी लक्ष्मी बाई के हांथों में आ जाती है, इसी बीच अंग्रेजों के लार्ड डलहोजी एक नीती बनाते हैं इस नीती के तहत उन राज्यों को अंग्रेजी शासन में शामिल किया जाना था जिनके उत्तराधिकारी नहीं होते थे। ऐसे में महारानी लक्ष्मी बाई के स्वयं की कोई भी संतान ना होने की वजह अंग्रेज उनके शासन को हड़पने का प्रयास करते हैं लेकिन रानी लक्ष्मी बाई अपने राज्य को अंग्रेजी शासन में मिलाने से मना कर देती हैं और तात्या टोपे की मदद से अंग्रेजों से युद्ध लडती है।
लेकिन अंग्रेज अपने चालाकी भरे पेतरे जारी रखते हैं और आखिरकार रानी लक्ष्मी बाई हारने लगती है। और इस हार से बचने के लिए ग्वालियर के महाराज जीवाजी राव सिंधिया से मदद मांगने जाती है। लेकिन जीवाजी राव उनकी मदद करने से मना कर देते हैं।
कुछ बुद्धिजीवियों के अनुसार इसका सीधा कारण था कि अगर सिंधिया रानी लक्ष्मी बाई की मदद करते तो अंग्रेज उनका राज्य हड़प लेते और इसलिए सिंधिया अंग्रेजों से कोई भी शत्रुता नहीं लेना चाहते थे।
यहाँ एक बात जो महत्वपूर्ण है कि रानी लक्ष्मीबाई भी मराठा थी और महाराज जीवाजी राव सिंधिया भी मराठा ही थे लेकिन फिर भी जीवाजी राव देश द्रोही थे।
हम सभी जानते हैं जीवाजी राव सिंधिया का खानदान आज भी ग्वालियर में फलफूल रहा है, और इनके महल जयविलास पैलेस में इनका ऐश्वर्य देखा जा सकता है।
खैर अगर जीवाजी राव सिंधिया रानी लक्ष्मी बाई को धोखा ना देते तो भारत को आज़ादी के लिए 1947 तक इंतज़ार ना करना पड़ता। रानी लक्ष्मी बाई की समाधी आज भी ग्वालियर के फूल बाग़ में बनी हुई है।वहां जलती अमर ज्योति को नमन करने आज भी दुनिया भर से लोग आते हैं।
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