जीवन शैली

नमस्‍कार के पीछे है वैज्ञानिक रहस्य, क्या आप जानते है ?

नमस्‍कार हमारी संस्‍कृति का हिस्‍सा है.

नमस्‍कार सदियों से हमारी जीवन शैली से जुड़ा हुआ है, जिसे हम आज की स्थिति में कम इस्तमाल करने लगे है.

पश्चिमी देशो की संस्कृति को हम इस कदर आंख बंद करते हुए अपनाते जा रहे है कि हमे अपनी  सस्कृति के वास्तविक मायने ही भूलते जा रहे है. एक दुसरे के हाथ में हाथ  मिलाकर हेल्लो हाय बोलने से काफी बेहतर नमस्कार करना होता है. नमस्कार के पीछे कोई रुढ़िवादी सोच नहीं है. इसके पीछे वैज्ञानिक दृष्टि है जिसे समझ कर इसे अपने जीवन में सभी लोगों को अपनाना चाहिए.

नमस्कार करने का तरीका

आराम से सीधे खड़े रहो. दोनों हाथो के पंजे छाती के पास लाकर हाथो  के पंजों को मिला दो. ये हाथो के पंजों को थोडा टेढ़ा रखते हुए छाती के पास हो. उंगलियों से उंगलिया मिलना चाहिए.

नमस्कार करते वक़्त हाथो  में कुछ समान नहीं पकड़ना चाहिए. मन में कोई भी दूर भाव नहीं लाना चाहिए. नमस्कार करते वक़्त शारीर को ना तो सख्त  रखे ना ही पूरा ढीला. भगवान हो चाहे अच्छा बुरा इंसान को नमस्कार, करते वक़्त गुस्सा नहीं करना चाहिए. नमस्कार करते वक़्त शरीर को हिलाना नहीं चाहिए और पैरो को बहुत दूर भी नहीं रखना चाहिए.

जब आप भगवान को नमस्कार करे तो सर को हल्का झुकाते हुए आखों को बंद करे, फिर छाती के पास मिले हुए हाथो के पंजों के पास सर से ले जा कर बाहर निकले अंगूठे से लगा दो. यह करने पर भगवान से मिली हुई शक्ति आपने शारीर और मस्तिष्क में तुरंत संचारित हो जाती है.

लोगों को नमस्कार करते वक़्त उनके आंखो में देखते हुए थोडा सर केवल आपको झुकाना है. इससे सकारात्मक शक्ति का आदान प्रदान होता है.

नमस्कार करते वक़्त क्या नहीं करना चाहिए

पहले ज़माने में नमस्कार करते वक़्त पैर में चप्पल नहीं पहनी जाती थी. चाहे वो नमस्कार भगवान को हो या लोगों को किया नमस्ते हो. लेकिन अब ऐसी शूज़ और सैंडल के हम आदि हो गए है कि उनको निकालने और पहनने में काफी वक़्त चला जाता है. इस लिए नमस्कार करते वक़्त सभी लोग जुते उतारना भूलने लगे है.

किंतु भगवान को नमस्कार करते वक़्त आपको जुते नहीं पहनना  चाहिए. पैर में जुते  और चप्पल हो तो नमस्कार करने पर  मिलने वाली वो चेतना और सही शक्ति नहीं मिल पाती है.

हिंदू परंपराओं के पीछे छुपा हुआ है ये विज्ञान. नमस्कार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नमस  शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है एक आत्मा का दूसरी आत्मा से आभार प्रकट करना. नमस्‍कार करने का स्‍टाइल भले ही थोड़ा पुराना हो गया हो, लेकिन सही तरीके से और पुरे भाव अर्थ से शायद ही नमस्कार का कोई आज प्रयोग करता होगा.

अब तो विदेशी लोग जिनको नमस्कार का अर्थ पता चला है वो भी इसका प्रयोग अपने दैन्दिन में करने लगे है.

आप क्यों रुके हो, जल्द से आप भी रोज इस नमस्कार कर सही प्रयोग करना सुरु कर दो. जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होने लगेगी.

Neelam Burde

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