इस्लाम के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जाता है. अधिकतर गलत ही लिखा जाता है.
इसमें लोगों की भी गलती नहीं है, समस्या ये है कि इस्लाम धर्म के बारे में पूरी जानकारी ना होने की वजह से तरह तरह की भ्रांतियां फैली हुई है. इतना ही काफी नहीं है विभिन्न आतंकी संगठनों और इस्लामिक कत्त्र्पंथियों की वजह से इस प्रगतिवादी धर्म को रुढ़िवादी बना दिया गया है.हमें ये जानना होगा कि कोई धर्म बुरा नहीं है जब तक कि उसमे कही लिखी बातों के गलत मतलब निकालकर लोगों को भरमाया जाए.
आइये आज आपको बताते है कि इस्लाम की प्रथाएं जिनका कारण धार्मिक से ज्यादा वैज्ञानिक है.
आज के मुसलमान आदमियों की पहचान अक्सर उनकी दाढ़ी और टोपी से की जाती है और औरतों की पहचान बुर्खे से. आज भले ही अन्धानुकरण की वजह से पूरे विश्व में दाढ़ी और बुरखा बन गयी है लेकिन कुरान में कहीं दाढ़ी और हिजाब का जिक्र नहीं है.
बड़ी दाढ़ी और सफाचट मूंछ
अक्सर मुसलमानों की पहचान का सबसे आसान तरीका उनकी दाढ़ी मानी जाती है. दाढ़ी और उसे साथ मूंछ नहीं.
मौलाना मौलवी से लेकर आम मुसलमान ऐसे ही दाढ़ी मूंछ रखते है. कुछ लोग इसे इस्लाम के कट्टरपंथ से जोड़ते है. अगर ये कहें कि इस दाढ़ी उंच का इस्लाम से ज्यादा लेना देना मौसम से है तो ?
जी हाँ ये बात सही है. इस्लाम की उत्पत्ति अरब में हुई थी. हम सब जानते है कि अरब में धूल मिट्टी बहुत ज्यादा है और यदा कदा रेतीले तूफ़ान आते रहते है. ऐसे में दाढ़ी चेहरे को गर्मी से जलने से बचाती है और घनी मूंछ होने पर अक्सर ऐसा होता है कि कुछ खाते या पीते समय बाल या धूल खाने में जा सकते है.
इसलिए मूंछ को ना के बताबर रखा जाता है.
हिजाब या टोपी
हिजाब, टोपी और बुर्का ये सब आम पहचान बना दी है हमने इस्लाम की. लेकिन ये सच नहीं है. हिजाब और बुर्के का भी वही कारण है जो दाढ़ी का है. रेतीले तूफानों और धूल मिट्टी से शरीर को बचाने के लिए पूरे शरीर को कपडे से ढका जाता है.
मर्द लम्बे चोगे जैसे कपडे पहना करते थे और औरतें बुर्का. धीरे धीरे इस मौसम से बचने के तरीके को इस्लाम से जोड़ दिया गया. अगर कोई और धर्म मानने वाला भी अरब देशों में जाए तो उसे अपने सर और शरीर को धूल मिट्टी से बचाने के लिए लम्बे लबादे जैसे कपडे पहनने होंगे.
बुर्का
आज बहुत से कट्टरपंथी मुस्लिम महिलाओं को बुर्का पहनाने पर जोर देते है.
लेकिन क्या आप जानते बुर्के पहनने की शुरुआत अरब में इसलिए हुई कि वहां का मौसम गर्मी और धूल भरा है. इसके साथ साथ वहां पानी की भी कमी है.
इसलिए वहां की महिलाएं अपने शरीर और बालों को बचने के लिए सर ढकने वाले लम्बे कपडे पहनती है.
वजू
मस्जिद में नमाज़ अदा करने से पहले आपने इस्लाम मानने वालों को अपने हाथ पैर धोते हुए देखा होगा. ये ठीक वैसा ही है जैसे हिन्दू मंदिर में जाने से पहले हाथ पैर धोते है.
वजू करने के लिए बहुत कम पानी का इस्तेमाल किया जाता है और शरीर का सिर्फ वही भाग साफ किया जाता है जो हवा के सम्पर्क में होता है. इसका भी कारण अरब का गर्म और धूलभरा वातावरण है.
अरब में पानी की बहुत कमी है और धूल से बचने के लिए लम्बे कपडे भी पहने जाते है. इसलिए मस्जिद में नमाज़ अदा करने से पहले सिर्फ हाथ मुहं और पैर ही धोये जाते है क्योंकि यही हिस्से लबादे या चोगे से बाहर होते है.
देखा आपने हिन्दू धर्म की मान्यताओं के पीछे जिस तरह बहुत से वैज्ञानिक और जलवायु सम्बंधित कारण है ठीक उसी प्रकार इस्लाम मानने वालों की भी वेशभूषा से लेकर खान पान तक सबकुछ विज्ञान या क्षेत्र विशेष की जलवायु से जुड़ा है.
आज भले ही इस्लाम की इन सब बातों को कट्टरता से जोड़ दिया गया हो लेकिन सच ये है कि ये सब बातें बस सुविधा के लिए ही शुरू की गयी थी.
कुरआन में कहीं जिक्र नहीं है कि इस्लाम मानने वाले को बुर्का टोपी या लम्बी दाढ़ी ज़रूरी है.
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