लाश, मुर्दा ये सब शब्द सुनते ही शरीर में सनसनी दौड़ जाती है.
हमारा कोई कितना भी प्रिय हो जब वो मरता है तो ज़ल्द से ज़ल्द उसकी अंतिम क्रिया करने की कोशिश करते है. क्योंकि हम जानते है कि मरने के बाद इंसान का शरीर बहुत ज़ल्द सड़ने लगता है. लेकिन अगर ये कहा जाए कि कुछ लाशें ऐसी है जो आज सैकड़ों और हजारों साल पुरानी होने के बाद भी आज वैसी ही है जैसी जिंदा थी.
कुछ लाशों को विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा वैसा रखा गया है तो कुछ लाशें ऐसी भी है जिनके बारे में ये समझ नहीं आता कि वो कैसे अब तक सही सलामत है.
क्या कुदरत की ताकत ने उन्हें बचाया या फिर कोई और राज़ छुपा है इन रहस्यमयी जिंदा लाशों के बारे में.
व्लादिमीर लेनिन
रूस में साम्यवाद के पिता माने जाने वाले लेनिन का मृत शरीर आज भी ऐसा लगता है कि जैसे अभी उठ खड़ा होगा. आज भी चेहरे पर वैसी ही चमक और आभा. लेनिन की मृत्यु के बाद जब स्टालिन ने रूस की बागडोर संभाली तो एक विशेष तकनीक के जरिये लेनिन की लाश को ठीक वैसा ही रखा गया है जैसे वो मृत्यु के समय थे. सोवियत संघ के समय में लेनिन के शरीर से हर साल सूट को बदला जाता था. सोवियत संघ के पतन के बाद ये प्रक्रिया पांच साल में एक बार की जाती है.
रोज़ालिया लोम्बारडो
रोज़ालिया अपने पिता को बहुत प्यारी थी. लेकिन निमोनिया की वजह से मात्र दो साल की उम्र में ही प्यारी रोज़ालिया की मौत हो गयी. अपनी परी सी बेटी की मृत्यु से उनके पिता टूट गए. अपनी बेटी को हमेशा के लिए जिंदा रखने के लिए उन्होंने इटली के प्रसिद्ध ममीकार की सेवा ली.
आज करीब सौ साल बाद भी मासूम रोज़ालिया का शरीर ठीक वैसा ही है जैसा उसके जिंदा होने पर था. उसकी मासूमियत देखकर लगता है कि ना जाने कब फिर से रोज़ालिया अपनी गहरी नींद से उठ जाये. x-ray करने पर पता चला कि रोज़ालिया के शरीर के अंग सही सलामत है बस समय के साथ साथ उसके आंतरिक अंग जैसे दिमाग कुछ सिकुड़ गए है.
दाशी दोर्ज़ो इतिग्लिओव
सन 1927 में दाशी कमलासन में बैठे हुए ध्यान कर रहे थे. ध्यान करते करते ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. दाशी ने अपने शिष्यों को कहा था कि जिस परिस्थिति में उनके प्राण निकले उन्हें वैसे ही दफनाया जाये.
दाशी रूस के एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुक थे. मृत्यु के बाद दाशी को उसी तरह दफनाया गया. सालों बाद 1955 में उनकी लाश को निकाला गया तो आश्चर्यजनक रूप से उनकी लाश वैसी की वैसी ही थी जैसी मृत्यु के समय थी. चेहरे पर वही शांति वही तेज़. 55 के बाद एक बार फिर 1973 में दाशी की लाश को फिर से निकाला गया और इस बार भी उनका शरीर वैसा ही था. दाशी के मृत शरीर की इस अद्भुत घटना को 2002 तक जनता को नहीं बताया गया. 2002 के बाद दाशी के शरीर को एक धरोहर घोषित कर दिया गया है. आज दाशी का शरीर एक बौद्ध मंदिर में खुले में पेड़ के नीचे रखा है. उन्हें देख कर लगता है कि जैसे जल्दी ही उनका ध्यान खत्म होगा और वो आँखे खोल देंगे.
संत कैथरीन
इनका जन्म 1844 में फ़्रांस में हुआ था. जन्म के समय से ही वर्जिन मैरी ने इन्हें बहुत बार दर्शन दिए.कैथरीन बहुत ही सेवाभावी थी. उनके जन्म के समय से ही उनके चमत्कारिक होने की बात फैलने लगी थी. 35 वर्ष की आयु में टी बी रोग की वजह से उनकी मृत्यु हो गयी.
मृत्यु के बाद जब उन्हें संत की उपाधि दी गयी और उनके मृत शरीर को निकाला गया तो सब के सब भौचक्के रह गए. उनका मृत शरीर अब तक बिलकुल वैसा ही था जैसा मृत्यु के समय. सीने पर हाथ जोड़े लेती हुई कैथरीन की लाश ऐसे लग रही थी जैसे कि वो प्रार्थना में लीन हो.
आज भी उनका शरीर एक स्वर्ण ताबूत में लोगों के दर्शनार्थ रखा गया है.
इंका सभ्यता की लड़की
करीब 500 वर्ष पहले एक 15 वर्ष की इंका लड़की को बर्फ के पहाड़ों में देवता को भेंट चढ़ा दिया गया था. भेंट का मतलब उस बर्फीले मौसम में उसे मरने को छोड़ दिया गया था.1999 में जब पुरातत्वेत्ताओं को इस लड़की और साथ में उसी उम्र की दो और लड़कियों की लाशें मिली तो ऐसा लगा कि किसी ने ताजा ताजा मार कर छुपा दिया है. जांच करने पर आश्चर्य की सीमा ही नहीं रही जब ये पता चला की ये लाश 500 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है. बर्फ कम तापमान और कम ऑक्सीजन की वजह से शरीर नष्ट नहीं हुआ. आज भी बैठी मुद्रा में राखी इस लाश को देख कर लगता है कि जैसे कोई लड़की बैठे बैठे सो गयी है.
देखा आपने कितनी रहस्यमयी है ये दुनिया. हजारों साल से प्रकृति ने कुछ शरीरों को वक्त की मार से बचा रखा है. वहीँ कुछ ऐसी भी लाशें है जिन्हें इंसान ने बचाया है. कुछ भी हो एक जिंदा मुर्दों को देखकर एक बार तो पूरे शरीर में डर की लहर दौड़ ही जाती है.
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