दाशी दोर्ज़ो इतिग्लिओव
सन 1927 में दाशी कमलासन में बैठे हुए ध्यान कर रहे थे. ध्यान करते करते ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. दाशी ने अपने शिष्यों को कहा था कि जिस परिस्थिति में उनके प्राण निकले उन्हें वैसे ही दफनाया जाये.
दाशी रूस के एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुक थे. मृत्यु के बाद दाशी को उसी तरह दफनाया गया. सालों बाद 1955 में उनकी लाश को निकाला गया तो आश्चर्यजनक रूप से उनकी लाश वैसी की वैसी ही थी जैसी मृत्यु के समय थी. चेहरे पर वही शांति वही तेज़. 55 के बाद एक बार फिर 1973 में दाशी की लाश को फिर से निकाला गया और इस बार भी उनका शरीर वैसा ही था. दाशी के मृत शरीर की इस अद्भुत घटना को 2002 तक जनता को नहीं बताया गया. 2002 के बाद दाशी के शरीर को एक धरोहर घोषित कर दिया गया है. आज दाशी का शरीर एक बौद्ध मंदिर में खुले में पेड़ के नीचे रखा है. उन्हें देख कर लगता है कि जैसे जल्दी ही उनका ध्यान खत्म होगा और वो आँखे खोल देंगे.