एससी एसटी – देश मे आरक्षण व्यवस्था इसलिए लागू की गई थी ताकि निचली जातियों के लोगों को भी मुख्यधारा में शामिल किया जा सके, मगर आज़ादी के सात दशक बाद भी आरक्षण खत्न नहीं किया गया, बल्कि इसे और बढ़ा दिया गया है जिसका खामियाज़ा जनरल कैटेगरी के लोगों को भुगतना पड़ रहा है, शिक्षा से लेकर नौकरी तक.
इतना ही नहीं अब तो सरकार खुलेआम वोटबैंक के लिए एससी एसटी पर मेहरबान हो रही है और जनरल कैटेगरी की साफ अनदेखी कर रही है.
हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट में यह कहते हुए बदलाव किए कि इस एक्ट का गलत इस्तेमाल हो रहा है और इसका दुरुपयोग रोकने के लिए अदालत ने नई गाइडलाइन जारी की, मगर अदालत के इस फैसले का पूरे देश में एससी एसटी समुदाय ने विरोध किया. इतना ही नहीं सरकार भी इस फैसले के खिलाफ थी. इसलिए रिव्यू पिटिशन दायर की, मगर अदालत न उसे खारिज कर दिया. जिसके बाद बीजेपी की सरकार ने संसद के मॉनसून सत्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अध्यादेश लाकर बदल दिया और यह क़ानून पहले की तरह ही हो गया. केंद्र सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अब कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
विरोध करने वालों का कहना है कि एससी एसटी क़ानून का ग़ैर-एससी एसटी समुदायों को फंसाने में दुरुपयोग किया जा रहा था और सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिल्कुल सही था. आखिर ये एससी एसटी एक्ट है क्या?
आपको बता दें कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों पर होने वाले अत्याचार और भेदभाव को खत्म करने के लिए कि अनुसूचित जाति जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधीनियम 1989 बनाया गया. जो जम्मू कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों में लागू होता है. इस एक्ट के तहत अभी तक जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने पर व्यक्ति के खिलाफ तुरंत केस दर्ज हो जाता था और उसके तुरंत बाद गिरफ्तार कर लिया जाता था. इस मामले में इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को भी मामले की जांच का अधिकार था. इस मामले में सुनवाई बस स्पेशल कोर्ट में होती थी और अग्रिम जमानत सिर्फ हाईकोर्ट से ही मिल सकती थी.
सुप्रीम कोर्ट की नई गाइलाइन के बाद जातिसूचक शब्दो के इस्तेमाल पर तुरंत केस दर्ज नहीं होगा और न ही गिरफ्तारी होगी. डीसीपी रैंक का अधिकारी मामले की पहले जांच करके देखेगा की आरोप सही है या गलत. आरोप यदि सही हुआ तभी गिरफ्तारी होगी. लेकिन अब सरकार ने अध्यादेश लाकर पुरानी स्थिति बहाल कर दी है. यानी एक बार फिर से एससी एसटी एक्ट का दुरुपयोग होगा और इस जाति के लोग बदले की भावना या किसी को फंसाने के मकदस से ऊंची जाति के लोग को फंसा सकते हैं और सरकार को इस बाद से कोई लेना देना है.
केंद्र में सत्ता चाहे किसी भी पार्टी की हो उसका एकमात्र उद्देशय अपने वोटबैंक को बचाए रखना होता है और एससी एसटी एक्ट में पुरानी स्थिति बहाल करके बीजेपी ने भी साबित कर दिया कि उसे बस अपने वोटों से मतलब है सही और गलत से नहीं. वो एससी एसटी का वोट खोना नहीं चाहती इसलिए कोर्ट के फैसले को भी पलट दिया. क्या आपको ये सही लगता है? अपनी राय कमेंट बॉक्स में लिखें.
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