आपने बड़े-बड़े भारतीय योद्धाओं की वीरता की कहानियां को पढ़ी और सुनी ही होंगी.
लेकिन आज जिन योद्धाओं की कहानी हम आपको बताने वाले हैं वह कोई योद्धा नहीं थे. वे मजदूर और किसान थे जो एक मुस्लिम शासक से परेशान हो चुके थे. उन्होंने ऐसा युद्ध लड़ा कि वह इतिहास में दर्ज हो गये.
जी हाँ, औरंगजेब के अत्याचारों से देश की जनता त्रस्त हो चुकी थी. जब दिल आया कत्लेआम किया, जब दिल आया स्त्रियों को उठा लिया. यह सब औरंगजेब के शासन में हो रहा था.
15 मार्च 1672 को नारनोल में सतनामी सम्प्रदाय से दीक्षित लोगों ने औरंगजेब की धर्म विरोधी नीतियों के चलते विद्रोह कर दिया था. इस सतनाम विद्रोह के बारे में हमारी इतिहास की किताबें बताती हैं कि यह सभी लोग कोई पेशेवर सैनिक नहीं थे. ये साधारण कार्य करने वाले विभिन्न जातियों खाती, सुनार, रैगर आदि मेहनतकश हिन्दू जाति के लोग थे.
इसी समुदाय के 5000 हजार लोगों ने नारनोल में इकठ्ठा होकर विद्रोह कर मारकाट मचा दी. नारनोल कस्बे को लुट लिया और मस्जिदे ढहा दी. इनके विद्रोह व मारकाट से घबराकर नारनोल का शाही फौजदार कारतलखान अपनी जान बचाकर भाग निकला. एक बार फिर से पड़ोसी जागीरदारों को लेकर उसने सतनामियों पर हमला किया पर सतनामियों ने उसे भगा दिया और वे नारनोल पर कब्ज़ा कर दिल्ली के 17 किलोमीटर तक लूटपाट करते पहुँच गए थे.
क्या लिखते हैं इस विद्रोह के बारें में लेखक
जब इस विद्रोह की खबर औरंगजेब को हुई, तो उसने अपनी सेना को लड़ने के प्रोत्साहित किया लेकिन तब कोई भी सैनिक लड़ने को तैयार नहीं हो रहा था. औरंगजेब युद्ध से इतना नहीं घबरा रहा था जितना कि यह देखकर डर रहा था कि उसके सैनिकों की हिम्मत टूट गयी थी. तब कुछ लेखक लिखते हैं कि एक महान राजा यह देखकर अंदर से इतना टूट गया था कि वह रोने लगा था. कहीं न कहीं राजा को अपनी गलती का एकसास होने लगा था कि मेरे अत्याचारों से तंग आकर यह विद्रोह भड़का है.
जब यह सतनामी योद्धा लड़ रहे थे तब कुछ अन्य भारतीय रियासतें भी इतनी हिम्मत देखकर दम मारने लगी थी. कुछ लोग अपनी खोई रियासतों को वापस पाने के लिए दूसरी तरफ लड़ना शुरू कर चुके थे. कुछ लोगों से इसमें सफलता भी प्राप्त कर ली थी.
अंत में मारे गये सतनामी
औरंगजेब ने अंतिम प्रयास के लिए हिन्दू सैनिकों को चुना, जो सेना लड़ाई के लिए बनाई गयी उसमें मुग़ल सरदारों को शामिल किया गया. राजा बिशेन सिंह, हामिद खाँ और कुछ मुग़ल सरदारों के प्रयास से कई हजार विद्रोही सतनामियों को मरवा दिया गया. औरंगजेब अच्छी तरह से जानता था कि अब इस लड़ाई को उसके हिन्दू सैनिक और सरदार सैनिक ही लड़ सकते थे. कहते हैं कि 1672 का विद्रोह अभी तक के कई बड़े विद्रोहों में गिना जाता है. बचे हुए सतनामी सैनिक भाग गये और इस तरह से यह सतनामी विद्रोह कुचल दिया गया.
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