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सरकारी बाबू और उनकी चाय की चर्चा

दुनिया में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण चीज़ क्या होती है?

हमारे सरकारी नौकरशाहों या फिर सरकारी बाबू और उनकी चाय की चर्चा!

सरल भाषा में कहा जाए तो ‘सरकारी बाबुओं’ के लिए तो चाय ही दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है!

कभी देखा है किसी औरत को एक जोहरी की दुकान में? सामने दीवारों पर सजे हुए सोने, हीरे-जवाहरातों के हार, शोकेस पर लगे खूबसूरत कंगनों को देखकर उसके मन में सहसा एक लालच इजाद होने लगता है. ठीक उसी तरह चाय देखकर, सिर पर बालों से अधिक तेल लगाए, बिना गर्दन घुमाए चारों दिशाओं में देख सकने वाले सरकारी बाबुओं की जीभ ललचा जाती है. एक चाय का कप अपने अंदर समय की एक नयी शुरुआत भरकर उनकी तरफ आता है. फिर तो जो आराम से चुस्कियां ले-लेकर चाय पी जाती है कि पूछिए मत. मेज़ पर रखी उनकी नेम-प्लेट और उसकी बगल में रखा चाय का कप या गिलास उन पर ऐसे जचता है जिस तरह शेर का अयाल शेर पर जचता है.

सरकार क्लर्क

हमारे सरकारी बाबू चाय के सपनों में इस तरह खो जाते हैं कि जागना भूल जाते हैं. मैं तो कहता हूँ कि अपना-अपना काम कराने के लिए मेज़ के नीचे से घूस देना छोड़कर मेज़ के ऊपर एक-एक गिलास चाय रखना शुरू कर दीजिये. काम चाय की कृपा से अपने आप ही होने लग जाएगा. यह चाय के कई फायदों में से एक है. भईया इसी लिए तो चाय को राष्ट्रीय पेय कहते हैं. चाय की कीमत भले ही कम हो लेकिन उसका महत्व बहुत ज्यादा है. इस बात को सरकारी बाबुओं से अच्छा और कोई नहीं जानता. लेकिन कॉर्पोरेट दुनिया में मिलने वाली ग्रीन टी, कटिंग चाय के सामने आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों का बेस्वाद सा मिश्रण सी लगती है. वे बेचारे हमारे सरकारी बाबुओं की कटिंग चाय का मज़ा क्या जाने?

चाय के ग्लास

मेज़ पर सजे चाय के कपों और गिलासों के गोल निशान, मेज़ पर पड़ी फाइलों पर लगे चाय के छोटे-छोटे दाग, सरकारी बाबुओं की सफ़ेद कमीज़ पर लग जाने वाले चाय के धब्बे हमेशा ही एक सरकारी दफ्तर की पहचान बने रहेंगे. दफ्तर की कैंटीन भी ऐसी प्रतीत होती है जैसे खाना खिलाने से ज़्यादा चाय पिलाने में विश्वास करती हो. बस उस चाय बनाने वाले मेहनती आदमी की ५ बाय ८ की तस्वीर दफ्तर की दीवारों पर लगा दी जाए तो मज़ा आजाएगा. सोचिये महाराज की तस्वीर कैसी होगी. बनियान पहने महाराज अपने दायें हाथ को यूँ ऊपर किये खड़े हैं मानो आशीर्वाद दे रहे हैं और हाथ से चाय की एक तेजस्वी लहर निकलती नज़र आ रही है. वहीँ जब आप नज़र डालेंगें बांएँ हाथ पर, तो आप उन्हें चाय की केतली पकडे हुए पाएंगें. रोज़ दफ्तर में काम शुरू करने से पहले सरकारी बाबू इस तस्वीर को नमन करना नहीं भूलेंगे.

चाय विक्रेता

प्रसाद के तौर पर चाय पी जाएगी.

खैर ये तोह सिर्फ एक ख्याल था. लेकिन अंग्रेजों द्वारा प्रस्तुत की गयी यह चाय हमारी भारतीय संस्कृति में बेहद अच्छी तरह से जम गयी है. सरकारी दफ्तर तब तक खुले रहेंगे जब तक चाय बनती रहे. आखिरकार जहां चाय हो वहाँ आशा की एक किरण दिख ही जाती है.

Durgesh Dwivedi

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