आपने कई बार यह सुना जरूर होगा कि आजादी के वक़्त सरदार पटेल प्रधानमंत्री पद के सबसे काबिल व्यक्ति थे.
एक तरह से पार्टी के अन्दर सभी ने सरदार पटेल अपना नेता चुन भी लिया था. लेकिन अचानक से ही सब कुछ बदलता है और जवाहर लाल नेहरु प्रधानमंत्री बन जाते हैं.
आप अगर तब के इतिहास को उठाकर देखते हैं तो सरदार पटेल ने देश को फिर से टूटने और विखंडित होने से कई बार बचाया था. फिर चाहे बात हो कश्मीर पर पाकिस्तान के हमले की, या फिर हैदराबाद को एक और पाकिस्तान बनने से बचाने की. अगर यह व्यक्ति उस समय ना होता तो शायद देश के अब तक कई टुकड़े हो चुके होते.
यहाँ तक कि बोला जाता है कि अगर चीन युद्ध के समय सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो शायद चीन तब भारत पर हमला करने की भूल नहीं कर सकता था.
तो अगर आप इस बात की जांच करना चाहते हैं कि आखिर कैसे जवाहर लाल नेहरु को महात्मा गांधी ने प्रधानमंत्री चुना था तो आपको इतिहास में उतरना होगा.
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरने की अंतिम तिथि 29 अप्रैल 1946 थी .
यह नामांकन 15 राज्यों की कांग्रेस की क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा किया जाना था. तब तक किसी की समझ में नहीं आया तह कि आखिर मात्र महात्मा गाँधी ही क्यों नेहरू की पैरवी कर रहे थे. 15 राज्यों में से 12 राज्यों से सरदार पटेल का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया गया. बाकी 3 राज्यों ने किसी का भी नाम आगे नहीं आया. तो अब स्पष्ट हो गया था कि सरदार पटेल ही मुख्य नेता बनेंगे और प्रधामंत्री का पद ग्रहण करेंगे.
लेकिन गांधी जी को था यह डर
लेकिन शायद गाँधी जी तब तक समझ गये थे कि जवाहर लाल नेहरू भी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं और अगर वह कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बना तो कांग्रेस दो टुकड़ों में बंट जाएगी जो अच्छा नही होगा. इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि अंग्रेज देश को आजाद ही ना करें. तब अभी तक की सारी मेहनत खराब हो सकती थी.
जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के पीछे दूसरा मुख्य कारण यह बताया जाता है कि नेहरू पर अंग्रेजों को ज्यादा भरोसा था. एक तो वह खुद इंग्लैंड से पढ़े लिखे थे और दूसरा कि इनकी वफ़ादारी पर भी अंग्रेजों को शक नहीं था. इसीलिए अंग्रेजों ने गाँधी जी के सामने शायद यह शर्त रखी होगी कि अगर नेहरू प्रधानमंत्री नहीं बनते हैं तो देश को आजादी नहीं मिलेगी.
अब जैसे कि नेहरू को किसी भी राज्य की इकाई ने नहीं चुना था इसलिए जवाहर लाल नेहरु ने बड़ी चालाकी से अपना नाम कुछ गैर-हिन्दू नेताओं से आगे बढ़ाया और गांधी जी लगा कि सरदार पटेल की अभी इमेज कट्टरपंथी वाली है और अगर यह प्रधानमंत्री बनेंगे तो इससे देश की शांति को खतरा पैदा हो सकता है. यहाँ यह सिद्ध होता है कि कांग्रेस शुरुआत से ही मुस्लिमों का प्रयोग करती आ रही है.
तो इस तरह से एक धोखे के जरिये सोच-समझ कर सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने से रोका गया था जो बाद में देश के लिए दुर्भाग्य ही रहा है. कई लोगों ने अपने जीवनकाल के अंतिम समय में बोला भी है कि नेहरू का उस समय समर्थन करके उन्होंने बड़ी भूल कर दी थी.