देशहित सर्वोपरि था पटेल के लिए.
1946 में केवल महात्मा गांधी ने जवाहर लाल नेहरु का नाम अध्यक्षता के लिए दिया था बाकि पूरी जनता और कांग्रेस सरदार पटेल को अपने नेता के रूप में देखना चाहती थी. अंग्रजियत सामन्ती से भरे नेहरु को किसी के नीचे काम करना स्वीकार्य नहीं था और उन्हें ये भी पता था कि अगर सरदार पटेल की उम्मीद्वारी रही तो उनके जीतने की कोई संभावना नहीं है.
नेहरु ने ये बात गांधी को बताई. गांधी के कहने पर सरदार पटेल ने अपनी उम्मीद्वारी वापस ली और नेहरु निर्विरोध चुने गए.
इसका नतीजा ये हुआ कि देश को सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री से वंचित होना पड़ा.
आज सरदार पटेल की जन्मतिथि है. पटेल का जीवन देखने के बाद आह कल के राजनेताओं को देखकर शर्म सी आती है. काश वो भी पटेल के जीवन से कुछ सीख पाते.