लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो वाकिफ़ नहीं होगा.
सरदार पटेल का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता. आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री बनने के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार सरदार पटेल ही थे लेकिन वो कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए ये देश का दुर्भाग्य ही रहा.
आज़ादी के बाद जब देश में तमाम छोटी बड़ी रियासतों की वजह से बिखरने के कगार पर था, उस समय सरदार पटेल ही थे जिन्होंने अपने बुद्धि चातुर्य से देश को बिखरने से बचाया और रियासतों को एक करने का काम किया.
आइये आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की जन्मतिथि पर आपको बताते है सरदार पटेल के चरित्र की कुछ विशेषताएं जो बताती है कि क्यों वो देश के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमन्त्री बन सकते थे.
सरदार पटेल का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था.
वो स्वयं भी खेती किया करते थे. महीने में दो बार वो उपवास रखा करते थे. राजनीति में आने के बाद भी वो उपवास का नियम रखते थे. सरदार पटेल की विशेषता थी कि स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता के रूप में ऊँचा दर्जा प्राप्त करने के बाद भी उनका व्यवहार वैसा ही रहा जैसा उस समय था जब वो अपने गाँव में थे.
उनके मन में सबके लिए सद्भाव की भावना ही रहती थी.
सरदार पटेल का दोस्ती निभाने में भी कोई सानी नहीं था.
महात्मा गाँधी और नेहरु से दोस्ती से पहले भी वो हमेशा से दोस्ती के लिए कुछ भी कर गुजारने वालों में से थे. बात उस समय की है जब 1930 में भारत में प्लेग का प्रकोप हुआ. पटेल को पता चला कि उनके बचपन का एक दोस्त प्लेग से पीड़ित है. लोगों के मना करने के बाद भी सरदार पटेल अपने मित्र की सेवा करने के लिए पहुँच गए. सेवा करते करते पटेल खुद भी प्लेग की चपेट में आ गए.
ऐसी थी उनकी मित्रता जिसमे वो अपनी जान की परवाह भी नहीं करते थे.
कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल थे वल्लभ भाई पटेल.
1909 की बात है पटेल कोर्ट में जिरह कर रहे थे और तभी खबर मिली कि उनकी पत्नी का देहांत हो गया है.
पटेल की कर्तव्यनिष्ठा ही थी कि उन्होंने पहले कोर्ट की कार्यवाही पूरी की और उसके बाद कोर्ट खत्म होने पर सबको इस दुखद घटना के बारे में बताया
दूरदर्शिता सरदार पटेल की सबसे बड़ी खासियत में से एक थी.
1950 में पटेल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को एक पत्र लिखकर चीन के नापाक इरादों के बारे में चेताया था. लेकिन नेहरु ने सरदार पटेल की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया. नतीजा हुआ 1962 में भारत पर चीन का हमला और युद्ध में भारत की शर्मनाक हार.
अगर नेहरु, पटेल की बातों को मां लेते तो शायद आज हालात कुछ और ही होते.
अगर भारत में कोई सच्चा धर्मनिरपेक्ष नेता हुआ है तो वो वल्लभ भाई पटेल थे.
उन्होंने धर्म,जाति के नाम पर ध्रुवीकरण का हमेशा विरोध किया. पटेल ने ही सबसे पहले RSS की गतिविधियों और भाषणों को सांप्रदायिक बता कर देश के लिए खतरा बताया था.
ठीक ऐसा ही उन्होंने मुस्लिम लीग के लिए भी कहा था.
देशहित सर्वोपरि था पटेल के लिए.
1946 में केवल महात्मा गांधी ने जवाहर लाल नेहरु का नाम अध्यक्षता के लिए दिया था बाकि पूरी जनता और कांग्रेस सरदार पटेल को अपने नेता के रूप में देखना चाहती थी. अंग्रजियत सामन्ती से भरे नेहरु को किसी के नीचे काम करना स्वीकार्य नहीं था और उन्हें ये भी पता था कि अगर सरदार पटेल की उम्मीद्वारी रही तो उनके जीतने की कोई संभावना नहीं है.
नेहरु ने ये बात गांधी को बताई. गांधी के कहने पर सरदार पटेल ने अपनी उम्मीद्वारी वापस ली और नेहरु निर्विरोध चुने गए.
इसका नतीजा ये हुआ कि देश को सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री से वंचित होना पड़ा.
आज सरदार पटेल की जन्मतिथि है. पटेल का जीवन देखने के बाद आह कल के राजनेताओं को देखकर शर्म सी आती है. काश वो भी पटेल के जीवन से कुछ सीख पाते.
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