संसद भवन में सांसद का उपद्रव – भारत जैसे राष्ट्र में संसद अर्थात विधायिका का अपना ही महत्व है, क्योंकि यही एकमात्र ऐसी संस्था है जहाँ पर कुछ मुट्ठी भर लोग बैठकर सबा अरब भारतियों के भाग्य का निर्धारण करते हैं अर्थात कानून बनाते हैं, फिर चाहे यह कानून लालू जैसे अपराधी को बचाने के लिए बनाये जा रहे हो या फिर तीन तलाक जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए।
लेकिन सोचो जब संसद ही अपने आप में बेकाबू हो जाए तो क्या होगा ?
हमने ब्रिटेन से संसदीय शासन प्रणाली तो एक्सेप्ट कर ली लेकिन वह व्यवस्था एक्सेप्ट नहीं कि जिसमें उनके सांसदों की तरह हमारे सांसद भी अनुशासित हो पाते ।
खैर जो भी है हमें विश्वास है कि एक दिन हमारे सांसद जिन्हें अक्सर पब्लिक के बीच “रंग्गा बिल्ला, येडा, मल्ला” के नाम से बुलाया जाता है, एक दिन सुधर जायेंगे और फिर पार्लियामेंट नियमित रूप से आयेंगे और उचित सैलरी लेंगे, साथ ही संसद भवन की पिछली सीट पर बैठ कर ब्लू पिक्चर देखने से भी परहेज करेंगे, और हाँ चलते सदन में सोने से भी!!
भारत में सांसद बनने के लिए हमारे नेता पहले लाखों खर्च करते हैं, और फिर सांसद बन कर करोड़ों कमा भी लेते हैं, बिभिन्न योजनाओं (सांसद निधि के 5 करोड़) के पैसे खर्च करने की बजाय दल को देना अच्छा समझते हैं, इतनी परोपकार की भावना के साथ सांसद संसद में सुशोभित होते हैं। इसके अलावा हमने अक्सर देखा है कि हमारे सांसद मुख्यत वो जिन्हें पिछली सीट नसीब होती है, संसद सदन में जबरदस्ती का उपद्रव मचाते हैं. लेकिन आपने सोचा है कि हमेशा सुख की कामना करने वाले सांसद आखिर क्यों इतना कष्ट उठाते हैं, उसका कारण आज हम बताएँगे…
सांसदों के उपद्रव करने का वास्तविक कारण है सस्ती लोकप्रियता। इसका मतलब है कि पहले संसद की कैंटीन का सस्ता खाना खाना और फिर जब सदन की कार्यवाही शुरू हो तो कैमरा फोकस पाने के लिए जबरदस्ती का उपद्रव मचाना।
क्या आपको पता है कि आर्टिकल 19 (1 )(A) के तहत प्रेस तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है लेकिन हमें यह भी पता है कि यह स्वतंत्रता सीमित है अर्थात जो बात समाज को तोडती हो वह बात सार्वजानिक रूप से फैलाना मना है। लेकिन संसद के अन्दर यही अभिव्यक्ति की आजादी असीमित है, इसका मतलब है अगर कोई सांसद संसद के अन्दर कुछ भी बोलना चाहता है तो वह आजाद है ।
उदाहरण- अगर कोई व्यक्ति संसद के अन्दर आतंकवादियों के समर्थन की बात करता है या फिर भारत के टुकड़ों की बात करता है या फिर भारतीय संविधान, न्यायपालिका की आलोचना करता है तो इसका मतलब है की उसे कोई सजा नहीं दी जा सकती, लेकिन यही आलोचना संसद से बाहर करता है तो उस पर देश द्रोह तक का केस लग सकता है।
अतः स्पष्ट है कि क्या कारण है जो हमारे प्रिय सांसद, संसद के अन्दर खुल्ला सांड बन कर जो जी में आता है वह बोल देते हैं और फिर भी उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती. इसका कारण था हमारे संविधान द्वारा दिए गए अधिकार लेकिन आज समय के साथ बिभिन्न सांसदों द्वारा इन अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है, जो भारतीय राजनीती के लिए घातक तो है ही साथ ही एक क्रियाशील सरकार को रोकने में भी बाधक है।
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