ख़बर तो आपने भी सुनी होगी कि बॉलीवुड अभिनेता संजय दत को पूरे एक महीने की छुट्टी मिल गई है.
इसका मतलब ये हुआ कि वो ये एक महीना अपने घर रहेंगे या फिर किसी फ़िल्म की शूटिंग करें या कोई और असाइंगमेंट पूरा करें.
लेकिन ये छुट्टी उन्हें उनकी बेटी की नाक की सर्जरी के लिए मिली है। अब ऐसे काम तो लगे ही रहेंगे। कभी सर्जरी, कभी दोनों छोटे बच्चे के स्कूल का फ़ंक्शन, तो कभी पत्नी मान्यता की कोई समस्या, लेकिन क्या ये ज़रूरतें सिर्फ़ संजय दत्त की हैं? नहीं, ये तो किसी भी आम आदमी की हो सकती है। अब भले ही वो जेल में हो, घर में या घर के बाहर। कई बार तो बच्चों से दूर रहने पर माँ-बाप पहुँच नहीं पाते और किसी रिश्तेदार को वहाँ भेज देते हैं। उन पिता के लिए ये बात तब और असंभव हो जाती है, जब वो किसी कारणवश जेल में हों।
जेल में ऐसे कई क़ैदी होते हैं, जब उनकी इकलौती बहन की शादी होती है, लेकिन उन्हें पेरोल पर छुट्टी नहीं मिल पाती। किसी की बूढ़ी माँ बीमार होती है, तो किसी के साथ कोई और समस्या, लेकिन सभी संजय दत्त की तरह भाग्यशाली नहीं होते।
ये हम नहीं कहते कि संजय दत को छुट्टी देना ग़ुनाह है, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि २०१३ से सज़ा काट रहे संजय दत को कई बार छुट्टी मिल चुकी है। जेल प्रशासन की ओर से संजय दत के साथ कुछ ज़्यादा ही नरमी बरती जा रही है। इससे संजय दत को तो लाभ मिल रहा है, लेकिन जेल प्रबंधन पर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
अभिनेता होने के कारण ही शायद संजय को इतना फ़ेवर मिल रहा है। संजय की सज़ा को लेकर आम लोगों के मन में सदभावना रहती है, लेकिन ख़ुद संजय दत को ये बात समझनी चाहिए कि उनके जेल में रहने और सही तरह से जेल की नियमों का पालन करने पर उनके प्रति उनके फैंस का रवैया और भा बेहतर होगा।
संजय दत की बेटी के नाक की सर्जरी तो मान्यता भा करा सकती थीं।
आख़िर वो भी तो उसकी माँ हैं। और वैसे भी इन हाई- प्रोफ़ाइल लोगों का इलाज भी हाई लेवल से होता है। ऐसा नहीं है कि संजय दत्त को अपनी बेटी के साथ इस समय नहीं होना चाहिए, लेकिन बार-बार इस तरह से उनका पेरोल पर छुट्टी लेना जेल प्रशासन और ख़ुद संजय दत्त पर लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर देता है.
संजय दत को ५ साल की सज़ा के बीच यह चौथी बार पेरोल मिली है। आमतौर पर इतनी सज़ा में एक या अधिक से अधिक दो बार पेरोल मिलने की व्यवस्था है, लेकिन अब क्या कहें बार-बार संजय को छुट्टी मिलना किस ओर संकेत करता है , ये आप ख़ुद ही समझ जाइए। अब पूरा माहौल देखने के बाद तो यही लगता है कि जेल संजय दत्त के ख़ाला का घर हो गया है, जब मर्ज़ी हो जेल के अंदर, जब मर्ज़ी हो जेल के बाहर।
(इस लेख का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष पर किसी तरह की टिप्पणी करने का नहीं है. कई लेखों के पढने और लोगों की राय जानने के बाद इसे लिखा गया है. लेखिका का इस लेख को लिखना कोई व्यक्तिगत कारण नहीं है )