सम्राट समुद्रगुप्त एक ऐसे राजा रहे हैं जिनका यश और वैभव देश में तो खूब फैला ही था.
विश्वभर में इन्होंने एक अच्छी पहचान बना ली थी. सम्राट समुद्रगुप्त के कार्य इतने महत्वपूर्ण थे कि उनकी वजह से जब तक यह सम्पूर्ण विश्व रहेगा, समुद्रगुप्त का नाम अमर रहेगा.
भारत का नेपोलियन था, सम्राट समुद्रगुप्त
समुद्रगुप्त को विश्वभर में ‘भारत का नेपोलियन’ बोला जाता था. ऐसा भी लिखा हुआ है कि इस योद्धा ने कभी जीवन में पराजय का स्वाद नहीं चखा था. इसका मतलब यह है कि वह कभी किसी से नहीं हारा था. यह युद्धक्षेत्र में स्वयं वीरता और साहस के साथ अपने शत्रुओं से मुकाबला करता था. समुद्रगुप्त ने भारत को एकता के सूत्र में बांधने का महान् कार्य किया था. यही एकता ही तो इस राजा की ताकत थी. जनता को भगवान के रूप में देखता था और उनके हितों का ध्यान रखता था.
सम्राट समुद्रगुप्त के पिता तो लेकिन एक छोटे राजा थे
अब आप यह देखिये कि राजा समुद्रगुप्त ने यह सारी कामयाबी खुद कमाई थी. इनके पिता चन्द्रगुप्त थे जो एक छोटे से क्षेत्र के राजा थे. किन्तु अपने बेटों में वह सबसे छोटे बेटे, समुद्रगुप्त को काफी काबिल मानते थे. इसीलिए इन्होनें अपना साम्राज्य इनके नाम कर दिया था. पिता को समुद्रगुप्त ने वचन दिया था कि विश्व से हिंसा को खत्म कर दूंगा. साथ ही साथ इन्होनें दिग्विजय की कसम खाई थी.
पहले भारत में फहराया परचम सम्राट समुद्रगुप्त ने
समुद्रगुत ने उत्तर भारत से जीत की शुरुआत की थी जो धीरे-धीरे सारे उत्तर भारत पर कब्जा करने के बाद दक्षिण भारत तक पहुंची थी. ऐसा बोला जाता है कि तीन साल में तीन हजार मिल का सफ़र तय किया था. उन दिनों में यह बात असंभव थी. सभी लोग समुद्रगुप्त की युद्ध नीतियों से डर चुके थे. किसी को नहीं समझ आता था कि समुद्रगुप्त कैसे लड़ता है.
जब भारत के बाहर, गूंजा सम्राट समुद्रगुप्त का नाम
लेखक कृष्णदेव प्रसाद लिखते हैं कि जब समुद्रगुप्त ने देश के बाहर कदम रखा तो इनकी ख्याति और भी अधिक तेज गति से बढ़ने लगी थी. समुद्रगुप्त कभी भी लोगों के धर्म का विरोध नहीं करते थे. इनके अनुसार जो जिस धर्म को मानता है, मानता रहे, उस वह उनके सामराज्य में शामिल हो जाये. जल्द ही पूर्व के कई देश और पश्चिम के कई देशों पर समुद्रगुप्त का राज हो चुका था. काबुल, तुर्कीस्तान और आज के कई एशिया के देशों पर समुद्रगुप्त का ही राज था. सभी राजा और प्रजा समुद्रगुप्त के राज्य में खुश थे. यहाँ तक कि कई छोटे राज्य और काबिले खुद इनके पास चलकर आने लगे थे कि अब हमें भी अपने साम्राज्य में शामिल कर लीजिये.
अश्वमेघ करने वाला हिन्दू राजा
समुद्रगुप्त ने अपनी जीत को निश्चित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ कराया था और जब इन्होंने एक घोड़ा छोड़ा था तब कोई भी ऐसा राजा सामने नहीं आया था जिसने उस घोड़े को पकड़ा था.
इस लिहाज से निश्चित हो गया था कि समुद्रगुप्त को हराने वाला कोई नहीं बचा था.
समुद्रगुप्त की वीरता और साहस के कारण ही इनकी तुलना नेपोलियन से होने लगी थी. भारत देश में अगर गुप्त वंश की शुरुआत करने का श्रेय जाता है तो वह समुद्रगुप्त ही है.
सन 380 में समुद्रगुप्त का जाना देश के लिए नुकसानदायक ही साबित हुआ था. इसके बाद फिर कभी इतना शक्तिशाली योद्धा, आज तक विश्व में जन्म नहीं ले पाया है.