भारत का इतिहास हमेशा ही रहस्य और आश्चर्य से भरपूर रहा हैं.
जब अखंड भारत में मोर्य वंश का शासन था तो वही समय भारत का स्वर्णिम दौर रहा था.
भारत को उसी समय “सोने की चिड़िया” के नाम से पुकारा जाता था. मोर्य वंश की नीवं रखने वाले ‘सम्राट चन्द्र गुप्त’ के बाद अगर कोई तेजस्वी सम्राट हुए थे तो वो थे सम्राट अशोक.
सम्राट अशोक के शासन काल में भारत ने सबसे अधिक उन्नति की थी. लेकिन सम्राट अशोक के लिए सम्राट बनने का सफ़र बिलकुल आसन नहीं था. सिहांसन के इस सफ़र में सम्राट अशोक को अपने ही भाईयों की हत्या कर के इस मुकाम तक पहुचना पड़ा था.
कहा जाता हैं कि सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयों को मार कर बिहार के पटना में स्थित “अगम” नाम के कुएं में दफना दिया था. ऐसी मान्यता हैं कि इसके बाद चाहे कैसा भी मौसम हो वह कुआँ कभी भी नहीं सुखा. अगम कुएं से जुड़ा यह रहस्य आज तक सभी के लिए एक रहस्य ही बना हुआ हैं.
कहते हैं कि अगम कुएं की खुदाई सम्राट अशोक के काल 273-232 ईसा पूर्व में की गयी थी. इस कुएं की ख़ासियत यह हैं कि चाहे कितनी गर्मी पड़ जाये, या फिर कितनी बाढ़ क्यों न आ जाये कुएं के जलस्तर में कभी परिवर्तन नही होता हैं. सम्राट अशोक ने अपनी सभी 99 भाईयों को मारकर उनकी लाश इसी कुएं में डलवा दी थी. ऐसा कहा जाता हैं कि सम्राट अशोक ने अपना खजाना इसी कुएं रखा था.
इस विषय में जब पुरातत्व विभाग ने इसकी गहरराई नापनी चाही तो ज्ञात हुआ कि यह कुआँ 105 फीट गहरा हैं. चूँकि उस काल में कोई भी कुआँ 20 फीट से ज्यादा गहरा नही होता था इसलिए यह सोचने की बात हैं कि सामान्य गहरायी से 5 गुना अधिक गहराई की क्या आवश्यकता थी. इसी के बाद से इस कुएं को ‘अगम कुएं’ का नाम दिया गया. यहाँ अगम का अर्थ “पाताल से जुड़ा हुआ” होता हैं.
कहते हैं कि इस कुएं में श्रंखलाबद्ध तरीके से 9 और छोटे कुएं हैं और इन 9 कुएं के बाद सम्राट अशोक का ख़जाना रहता हैं. कहते हैं कि यह कुआँ कुम्हरार से जुड़ा हुआ हैं और इसी सुरंग की सहायता से सम्राट का यह ख़जाना यहाँ पहुचाया गया था.
इस कुएं के बारे में एक और मान्यता यह भी है कि यह कुआँ बंगाल स्थित गंगा सागर से जुड़ा हुआ हैं. इस बात का यह प्रमाण हैं कि ब्रिटिश काल के दौरान किसी अंग्रेज़ की छड़ी गंगा सागर में बह गयी थी और इतनी दूर पटना के इस कुएं में तैरती मिली थी. तब से उस छड़ी को कोलकाता के मुज़ियम में रखा जाता हैं.
इस कुएं की खोज की ब्रिटिश काल के लारेंस वाडेल ने 1902-03 में की थी. उन्हें इस कुएं से सबसे पहले पुरातन काल से जुडी कई मुर्तिया मिली थी. इस कुएं के पास आज भी शीतला माता का एक मंदिर हैं जिसमे लोग अपनी आस्था के अनुसार आकर पूजा करते हैं, लेकिन देवी पूजा से पहले सभी लोग इस कुएं की पूजा करते हैं.
कहा जाता हैं कि कुएं का पानी हमेशा अपना रंग बदलता रहता हैं. इस पानी से कुष्ट रोग और चिकन पॉक्स की बीमारी से राहत मिलती हैं, साथ ही कहा जाता हैं कि यहाँ आ कर मानी गयी संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होती हैं.
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