उत्तर प्रदेश में चाचा भतीजे के बीच जारी सियासी जंग अब लुका छिपी के खेल में तब्दील हो गई है.
समाजवादी पार्टी पर नियंत्रण को लेकर जारी रस्साकसी में अब स्थिति यहां तक आ गई है कि दोनों एक दूसरे की परछाई तक देखना पंसद नहीं कर रहें हैं.
12 अक्टूबर को एक ऐसा ही वाक्या हुआ जब समाजवादी परिवार कलह खुलकर देखने को मिली.
इस दिन डा. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर राजधानी लखनऊ में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया था. डा. राममनोहर लोहिया न्यास भवन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का अपनी केबिनेट में मंत्री और चाचा शिवपाल यादव से आमना सामना हो गया.
उस दौरान न तो उनके बीच कोई दुआ सलाम हुई और न ही कोई एक दूसरे को देखकर रूका ही.
बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सामने से आता देखकर उनके चाचा शिवपाल बराबर के कमरे में चले गए. ताकि अखिलेश का सामना न करना पड़े. वहीं चाचा द्वारा कन्नी काटने को लेकर अखिलेश ने भी उनसे मिलने की पहल नहीं की.
मुख्यमंत्री अखिलेश भी डा. लोहिया न्यास के बाद सीधे लोहिया पार्क पहुंचे और श्रद्धांजलि अर्पित कर बिना किसी से मिले चुपचाप लौट गए. जब अखिलेश श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रहे थे उस दौरान मुलायम और शिवपाल न्यास भवन से बाहर नहीं निकले. वे दोनों अखिलेश के जानें के बाद वहां पहुंचे और लोहिया को श्रद्धांजलि अर्पित की.
इसके एक दिन पहले भी ऐसा ही हुआ जब समाजवादी परिवार कलह खुलकर सामने दिखाई दिया. उस दिन जेपी सेंटर के उद्घाटन के अवसर पर दोनों नेताओं का आमना सामना हुआ लेकिन दोनों ने एक दूसरे से नजरे नहीं मिलाई.
समाजवादी परिवार कलह किस कदर बढ़ती जा रही है इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि कुछ दिन पहले लोक भवन के लोकार्पण में मुलायम जब पहुंचे तो मुख्यमंत्री वहां नहीं आये थे. इस पर मुलायम क्षुब्ध नजर आए. हालांकि कुछ ही देर में मुख्यमंत्री लोक भवन कार्यालय में पहुंच गए. लेकिन नाराज मुलायम ने फीता काटने से इन्कार कर दिया. बाद में आजम के कहने पर मुलायम ने फिता काटा था.
यही वजह है कि मुलायम अब अपने बेटे अखिलेश पर इशारों इशारों में हमला करने से भी नहीं चूक रहे हैं.
मुलायम ने अखिलेश की ओर संकेत करते हुए कहा है कि आज का युवा मेहनत तो करता हैं मगर समाजवादी सिद्धांतों को सीखना नहीं चाहता. वे टिकट चाहते हैं लेकिन क्षेत्र में उन्हें कोई जानता नहीं.
दरअसल अखिलेश यादव ने जिस प्रकार सपा में मेहनत की है उसकी मुलायम ने तारीफ की है. लेकिन वे जिस प्रकार कुछ दागी और अपराधी छवि के लोगों को पार्टी में शामिल करने का विरोध कर रहें हैं उसको पार्टी में उनकी टिकट वितरण में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है.
यही वजह है कि समाजवादी परिवार कलह बढ़ता जा रहा है. परिवार में दिनोंदिन दूरी बढ़ती जा रही है, जो आगामी विधान सभा चुनाव में खुलकर देखने को मिलेगी.
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