सरकार की मर्जी से बने राम मंदिर – चुनावों का दौर हो और राम मंदिर का मुद्दा तूल ना पकड़े ऐसा कभी नहीं होता।
जैसे ही चुनावी व्यार बहना शुरू होती है, वैसे ही सभी पार्टियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को राम लला की याद आ ही जाती है। हाल ही में राम मंदिर पर हुई 3 मिनट की सुनवाई के बाद इस मुद्दे को 3 महीनें के लिए टाल दिया गया। जिस मुद्दे पर सभी सरकारें कई दशकों से सिर्फ तभी जागती है, जब चुनावी माहौल दस्तक देता है…
आज वहीं सरकारें राम मंदिर को लेकर आए दिन नए-नए बयान देती है। आखिर दे भी क्यों ना, 2019 की चुनावी ब्यार जो बह रही है, तो हर कोई अपना वोट बैंक राम लला के नाम पर बढ़ाने का प्रयास तो करेगा ही… इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तो जल्द राम मंदिर की नींव तक रखे जाने के वादें तक कर दिये है।
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई टालने के बाद से ही सियासी बयानबाजी तेज हो गई है। हिन्दुवादी राष्ट्रीय स्वंय सेवक सगंठन अब राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने की मांग कर तक कर रहा है। इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने तो केन्द्र सरकार तो सुझाव तक दे डाला है कि कोर्ट की बजाय सरकार की मर्जी से राम मंदिर बनाये।
सरकार की मर्जी से बने राम मंदिर – राम मंदिर को लेकर राजनीति ने पकड़ा नया जोर
शिवसेना के नेता “संजय रावत” ने हाल ही में राम मंदिर पर आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि “कोर्ट अयोध्या मामले पर क्या बयान देता है, हमारा उस पर ध्यान नहीं है… संजय राउत ने कहा कि हमने कोर्ट से पूछकर बाबरी मस्जिद का ढ़ाचा नहीं गिराया था, कोर्ट की अनुमति लेकर कार सेवक मारे नहीं गए थे। हम चाहते है, राम मंदिर जल्द बनाया जाए… हम कोई पाकिस्तान या कराची में राम मंदिर बनाने की मांग नहीं कर रहे हैं।”
राम मंदिर के निर्माण को लेकर “महंत परमहंस दास” ने केन्द्र सरकार पर एक महिने के अन्दर कानून बनाने की मांग की है। साथ ही उन्होंने कहा है कि “अगर सरकार ऐसा नहीं करेगी तो मैं फिर से अनशन पर बैठूंगा और आत्मदाह भी कर लूंगा।” बतां दे कि इससे पहले भी महंत परमाहंस दास एक बार राम मंदिर मुद्दें को लेकर अनशन कर चुके हैं और उस दौरान उन्हें जबरन उठाकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
कोर्ट के बजाय सरकार की मर्जी से बने राम मंदिर
राम मंदिर पर मच रहे लगातार सियासी बवाल में “राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ” के सहसरकार्यवाह “मनमोहन वैद्य” ने भी सरकार को राय दी है। उनका कहना है कि “राम मंदिर का मामला हिन्दु बनाम मुस्लिम आर्थात मंदिर बनाम मस्जिद का नहीं है। वहीं इस मामले पर कोर्ट ने भी पहले ही साफ कह दिया था कि नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद अनिवार्य नहीं है, वे खुली जगह पर भी नमाज पढ़ सकते है।” साथ ही उन्होंने कहा कि “राम मंदिर पर अब और चर्चा की जरूरत नहीं है। ठाणे में संघ द्वारा आयोजित एक अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अब सरकार को और इंतजार नहीं करना चाहिए।”
गौरतलब है कि इससे पहले भी संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख “अरूण कुमार” ने भी एक प्रेस कॉंफ्रेस के दौरान कहा था कि “उच्च न्यायलय ने अपने फैसलों में यह स्वीकार किया है, कि अयोध्या राम लला का जन्म स्थान है और तथ्यों और प्राप्त सबूतों के आधार पर भी यह बात सिद्ध होती है कि उस स्थान पर राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था, तो कोर्ट या तो जल्द इस मामले में कोई फैसला सुनाया अन्यथा केन्द्र सरकार इस बात पर जल्द कोई निर्णय ले और राम मंदिर बनाने के मसले पर जोर दे।”
सरकार की मर्जी से बने राम मंदिर – राम मंदिर बनाने को लेकर अब सभी पार्टियों की और से केन्द्र सरकार पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। इतना ही नहीं आरएसएस के साथ-साथ बीजेपी के कई अन्य नेताओं ने शीतकालीन सत्र में राम मंदिर बनाने के अध्यादेश को लाने की मांग की है।
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