क्या आपने कभी सुना है कि आरएसएस ने इफ्तार पार्टी रखी?
सुनना छोडिये क्या आपने कभी सोचा था की आरएसएस इफ्तार पार्टी रखेगा?
नहीं ना. पर ऐसा ही हुआ है. आरएसएस ने ना सिर्फ इफ्तार पार्टी रखी बल्कि उलेमा सम्मेलन भी करने वाला है.
आरएसएस ने दिल्ली में इफ्तार पार्टी रखी, जिसमे कुछ देशों के डिप्लोमेट्स भी शामिल हुए. आरएसएस से जुड़े संगठन मुस्लिम राष्ट्र मंच ने इसका आयोजन किया और दिल्ली के अलावा अभी कई शहरों में आरएसएस की तरफ से ईद मिलन समारोह का आयोजन किया जाने वाला है. ये शहर हैं कानपूर, लखनऊ, सीतापुर, हरदोई और उन्नाव.
ज़रा इन शहरों पर गौर फरमाएं. ये शहर हैं उत्तर प्रदेश के. मतलब आरएसएस का ईद मिलन समारोह मुख्यतः उत्तर प्रदेश में रखे जा रहे हैं.
तो आरएसएस के अचानक सेक्युलर बनने की राह पर चलने का कारण 2017 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के चुनाव हैं?
दरअसल, यूपी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र आरएसएस कि नज़र राज्य की 18.5 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी पर है.
80 में से 34 सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक का सीधा असर पड़ता है. चुनावों को देखते हुए अस्साउद्दीन ओवैसी ने भी उत्तर प्रदेश में इफ्तार पार्टी रखनी शुरू कर दी है.
आरएसएस भले ही मुस्लिम वोटों को आकर्षित करने के लिए ये इफ्तार पार्टियाँ रख रही हो. पर इससे आरएसएस की छवि पर भी असर हो रहा है. आरएसएस के सहयोगी हिन्दू संगठन इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं. हिन्दू महासभा ने आरएसएस से इफ्तार पार्टियों और उलेमा सम्मलेन पर स्पष्टीकरण माँगा है. हिन्दू सम्मलेन ने यहाँ तक कहा कि आरएसएस वाले सेक्युलर बनने के चक्कर में हिन्दुओं को मुस्लिम टोपी पहना रहे हैं.
आरएसएस के इस कदम से अमित शाह के उस बयान को और पुष्टि मिल जाती है कि साम, दाम, दंड, भेद कुछ भी करो पर उत्तर प्रदेश हाथ से नहीं जाना चाहिए.
और इन सब से ये भी पता चलता है कि उत्तर प्रदेश अभी सभी पार्टियों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है. भाजपा किसी भी कीमत में उत्तर प्रदेश को हाथ से नहीं जाने देना चाहती और ये चाह इतनी बड़ी है की आरएसएस भी सेक्युलर बनने की राह पर चल पड़ा है.
राजनीति ऐसी चीज है कि आप इसके बारे में पहले से कोई अनुमान नहीं लगा सकते. कम से कम आरएसएस के इस कदम से तो यही पता चलता है. कल को अगर एआईएम्एम् यानि की अस्साउद्दीन ओवैसी की पार्टी अगर होली मिलन समारोह रखे तो इसमें चौकने वाली कोई बात नहीं होगी.
बस पता कर लीजियेगा आखिर कौन से राज्य में चुनाव आने वाले हैं?
पर जनता को भी ये दांव पेंच समझ में आते हैं, तो सभी राजनितिक पार्टियों और संगठनों से जनता यही कहेगी कि “ये पब्लिक है ये सब जानती है”.