भारत में आज भी कई राजघरानों में राजतिलक की परम्परा चली आ रही है.
लेकिन भारत में एक राज घराना ऐसा भी है, जो बुरी तरह से श्रापग्रस्त है. उस श्राप के कारण आज तक इस राज घराने के राजा- रानी उस श्राप से कभी उबर नहीं पाए हैं और राजतिलक की परंपरा निभाई नहीं गई.
तो आइये जानते है कौन और कैसे है श्रापग्रस्त !
मैसूर का वाडियार राजघराना श्रापग्रस्त है.
सन 1612 में दक्षिण क्षेत्र का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य का पतन हो गया, जिसका नाम विजयनगर था. ये कहा जाता है कि वाडियार राजा द्वारा आदेश पाकर विजयनगर में धन संपत्ति लुटी गई. जिस वक्त धन लूट की गई, उस वक़्त विजयनगर की महारानी अलमेलम्मा अपने राज्य पतन से दुखी होकर एकांतवास में रहने चली गई थी.
एकांतवास के दौरान भी महारानी के पास बहुत से सोने, चांदी और हीरे-जवाहरात की धन सम्पति थी.
वाडियार का राजा उस संपति को देखकर ललचा गया. उसने महारानी के पास राजदूत भेजकर उस के पहने गहने और साथ रखे गहने को वाडियार साम्राज्य की शाही संपत्ति घोषित कर उसको वापस करने की बात कही गई. लेकिन महारानी अलमेलम्मा ने अपने पास रखे गहने व संपत्ति देने से इंकार कर दिया.
उसके बाद वाडियार साम्राज्य की शाही सेना ने उस सम्पति को ज़बरदस्ती लूटकर अपने कब्जे में कर ली गई.
जिससे दुखी महारानी अलमेलम्मा ने वाडियार के राजघराने को श्राप दिया.
महारानी का श्राप था – “जैसे वाडियार की सेना ने मेरा घर वीरान किया है, वैसे ही वाडियार का राजघरान वीरान हो जाएगा. इस वंश में कोई पुत्र का जन्म नहीं होगा, राजा रानी पुत्र सुख से वंचित रहेंगे… ” कहते हुए महारानी अलमेलम्मा ने कावेरी नदी में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए थे.
जब राजा को इस श्राप का पता चला तब वह बहुत दुखी हुए. परन्तु कुछ नहीं कर सकते थे, क्योकि तब तक यह राजघराना श्रापित हो चुका था.
तब से वाडियार राजवंश में पुत्र का जन्म नहीं होता है. इस बात को लगभग 400 साल हो गए है.
इसलिए पिछले 400 सालों से राज परंपरा चलाने हेतु, यहाँ के राजा-रानी अन्य परिवारिक सदस्य के पुत्र को गोद लेते है और उसका राजतिलक करते है.
इस राज घराने का राज गोद ली गई संतान से ही चल रही है. जो भी यहाँ के राज गद्दी में बैठता है, उसको पुत्र की प्राप्ति नहीं होती. उसको अपने परिवारिक पुत्र को गोद लेकर राज तिलक करना पड़ता है और राज परम्परा को आगे बढ़ाना पड़ता है.