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क्या आत्महत्या करना कायरता नहीं हिम्मत का काम है? सोचने पर मजबूर कर देगा रोहित वेमुला का सुसाइड नोट!

आत्महत्या करने वाले कायर होते है…. ये बात लगभग हर आत्महत्या के बाद कोई ना कोई कहता या लिख देता है.

अगर हम ये कहें कि आत्महत्या करना कायरता नहीं बहादुरी का काम है तो ?

आप कहेंगे कैसी पागलों वाली बातें कर रहे हो.

अब एक बार ज़रा सोचकर देखिये हम खुद को एक छोटी सी चोट तक लगाने में डरते है, खुद की जान लेना तो बहुत दूर की बात है.

खुद की जान लेना बहादुरी हो भी सकती है और नहीं भी लेकिन ये कायरता कहीं से भी नहीं है. जिंदगी खत्म करने का फैसला अपने आप में एक बहुत बड़ा फैसला होता है.

हाल ही के दिनों में आत्महत्या की दर तेज़ी से बढ़ रही है. कुछ लोग परिस्थितियों से घबराकर आत्महत्या करते है तो कुछ बेवकूफी में अपनी जान दे देते है. इन दोनों के अलावा एक तीसरे प्रकार के लोग भी होते है जो किसी बात के लिए लड़ते है. कोई साथ दे या ना दे वो सही का साथ देने के लिए अपनी जान तक देने को तैयार रहते है. ये वो लोग है जो आज भी मानते है कि अंत में जीत सच्चाई की होती है, सच्चाई के लिए कुछ भी छोड़ा जा सकता है लेकिन किसी भी चीज़ के लिए सच्चाई को नहीं छोड़ा जा सकता.

ये लड़ते रहते है इस उम्मीद से कि एक दिन लोग जागेंगे और इस लड़ाई में साथ देने को आगे आयेंगे. लेकिन ऐसा नहीं होता है अंत में ये अकेले ही संघर्ष करते करते थक जाते है. इन्हें अहसास हो जाता है कि सदियों से सोये लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, जिस दुनिया का सपना हमने देखा है वो हमेशा सपना ही रहेगा.

क्रांति की बाते होगी, बदलाव की बातें होगी लेकिन ना कभी क्रांति होगी ना कभी बदलाव आएगा. वो कितना भी कोशिश कर ले ना वो इस सड़े हुए तंत्र को बदल सकेंगे ना वो इस सड़े तंत्र के हिसाब से ख़ुद बदल सकेंगे.

जब इस बात का पूरा अहसास हो जाता है तो वो जीवन रूपी गाड़ी की चैन खींच देते है और बीच राह में उतर जाते है. ऐसा ही कुछ किया हैदराबाद विश्वविद्यालय केPhd कर रहे दलित छात्र रोहित वेमुला ने.

रोहित उन पांच दलित छात्रों में से एक थे जिन्हें कुछ आरोपों के चलते हॉस्टल से बाहर निकाल दिया गया था. अपने साथियों के साथ मिलकर ये अनशन कर रहे थे और लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहे थे.

कल अचानक इस संघर्ष को बीच में ही छोड़ कर रोहित ने पूरी दुनिया को अलविदा कह दिया. रोहित ने आत्महत्या कर ली.

ये सिर्फ रोहित की मौत नहीं थी, ये हर उस इंसान की मौत थी जो गलत के खिलाफ लड़ रहा है, ये हर उस इंसान की मौत थी जो दुनिया को बेहतर बनाना चाहता है ये हर उस इंसान की मौत थी जिसमे इतनी हिम्मत है कि अगर वो इस समाज को बदल नहीं सकता तो इस समाज को कभी भी ठोकर मार कर हमेशा के लिए जा सकता है.

मरने से पहले रोहित ने सुसाइड नोट लिखा. ये पत्र अंग्रेज़ी में लिखा गया था यहाँ उसका अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है.

राहुल के इस आखिरी ख़त को पढ़कर आपको खुद से शर्म  आएगी, घृणा होगी इस समाज से जिसे हम विकसित समाज कहते है, बदबू आएगी उस सिस्टम से जा ना जाने कितने योग्य लोगों को लील रहा है और सम्मान करेंगे आप रोहित का, उसके विचारों का, उसकी सोच और उसके ज़ज्बे. रोहित की जगह खुद कर रखकर देखिये आँखे भर आएगी, एक अलग सा खालीपन घर कर जायेगा मन में और फिर आप भी कहेंगे कि आत्महत्या करना कायरता नहीं वाकई में बहादुरी का काम है.

रोहित वेलामु का सुसाइड नोट

गुड मॉर्निंग,

आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख़्याल भी रखा. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं.

मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से, लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं. हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं. हमारा प्रेम बनावटी है. हमारी मान्यताएं झूठी हैं. हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के ज़रिए. यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों.

एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक. आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है. एक वस्तु मात्र. कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया. एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी. हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में.

मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं. मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो.

हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में. प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था. बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए. इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा. मेरा जन्म एक भयंकर दुर्घटना थी. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला.

इस क्षण मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस ख़ाली हूं. मुझे अपनी भी चिंता नहीं है. ये दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं.

लोग मुझे कायर क़रार देंगे. स्वार्थी भी, मूर्ख भी. जब मैं चला जाऊंगा. मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे. मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यक़ीन नहीं करता. अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है.

आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी बाक़ी है. एक लाख 75 हज़ार रुपए. कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे रामजी को चालीस हज़ार रुपए देने थे. उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. लेकिन प्लीज़ फ़ेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें.

मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो. लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं. आप जान जाएं कि मैं मर कर ख़ुश हूं जीने से अधिक.

‘छाया से सितारों तक’

उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफ़ी चाहता हूं.

अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना.

आख़िरी बार

जय भीम

मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है.

किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से.

ये मेरा फ़ैसला है और मैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं.

मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए.

*(अनुवाद साभार BBC हिंदी )

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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