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भारतीय इतिहास में हजारों बार जिक्र है इस नदी का लेकिन आजतक किसी ने नहीं देखी यह नदी, तो क्या हमारा इतिहास झूठा है?

भारतीय इतिहास में एक नदी का हजारों बार जिक्र है.

वेदों में, रामायण में और इस नदी के बिना महाभारत का तो कोई अस्तित्व ही नहीं है. यहाँ तक कि ब्राहमणों में एक मानव जाति का नाम ही इस नदी के आधार पर है. लेकिन वह नदी सालों से ही हम लोगों ने नहीं देखी है. आपने नहीं देखी, आपके पिता और उनके पिता ने भी नहीं देखी. तो आखिर क्या वह नदी थी भी या नहीं?

ऐसी कौन-सी नदी है

हम बात कर रहे हैं सरस्वती नदी की जो आज से हजारों साल पहले भारत देश में बहती थी और यह नदी गंगा से भी अधिक आस्था का प्रतीक थी.

ब्राह्मणों में सारस्वत लोगों को सरस्वती का पुत्र माना जाता है. ऐसा बोला जाता है कि यह लोग सरस्वती से उत्पन्न हुए हैं.

महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी. आज भी लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं.

ऋग्वेद के नदी सूक्त में सरस्वती का उल्लेख है-

‘इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्ण्या असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोमया’..

रामायण के प्रसंग में भी राम जी द्वारा सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है-
‘सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च, उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारुण्डं प्राविशद्वनम्’..

वैज्ञानिक शोध

सरस्वती नदी कभी गंगा नदी से मिली या नहीं मिली, यह शोध का विषय अब भी बना हुआ है. वैदिक काल में एक और नदी दृषद्वती का वर्णन भी आता है. यह सरस्वती नदी की सहायक नदी थी. यह भी हरियाणा से होकर बहती थी. कालांतर में जब भीषण भूकंप आए और हरियाणा तथा राजस्थान की धरती के नीचे पहाड़ ऊपर उठे, तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई.

एक और जहां सरस्वती लुप्त हो गई, वहीं दृषद्वती के बहाव की दिशा बदल गई. इस दृषद्वती को ही आज यमुना कहा जाता है. इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है. भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का आधा पानी यमुना (दृषद्वती) में गिर गया इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा. सिर्फ इसीलिए प्रयाग में 3 नदियों का संगम माना गया.

धीमी गति से हो रहा कार्य

यहं तक कि जब सरकार से भी इस नदी को लेकर कोई जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की जाती है तो वह सही जवाब नहीं दे पाती है.

वैसे अब बोला तो जा रहा है कि एक बार फिर से इस महान नदी को उत्पन्न करने पर कार्य किया जा रहा है लेकिन वह कार्य बहुत ही धीमी गति से हो रहा है. आज आवश्यकता है कि सरस्वती नदी के महत्त्व को समझें और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इस पर जानकारी दें ताकि कहीं बचे ना बचे यह महान और पवित्र नदी सरस्वती हमारे विचारों में बची रहे.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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